जिनशतकम | Jinshtakam

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Jinshtakam by जम्बुगुरु - Jambuguru

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 (८१६) भद~ मेन्दफनामना ) उम्‌ खक्षवेडे जेमणे आनन्द कर्यो छे एवा, समे घ्राजिवाशाः-दियाओने दीतिमान्‌ कदनारा एवा दृष्णनी षडे शोमेछे ते प्रभु तमने समग्र सुख जापी- (सात्पये--आ श्टोक्मा लेप नामनो अर्लझ्ार छे. मम्मे शान्यत्रद्शर्मा एष शक्षण भा अमाणे सस्यु ऐ के-छेषः स॑ याक्‍्ये एकस्यिन, यज्ानेकार्थता मपेत्‌। एक वाक़्यमों ज्यों एक रतौ भषिरु भ्वणु रदु हेय घां मेष. ) यत्पादौनेमदधं शरण्यु- | मूर्धाधिरूढनमणर | सत्रपाटायटीषव्‌= भ्म. श्प षाण कोष, क्षम पदानी भयदा पादपौन्वृक्षयृस्म वे इक्त, | उद्धटस्कत्तम, ष्ट. | मनीन पतडनी पेडे धान्ये, ( भा, दिष्य | युदुररबुधन्समरस्पी | धत्तश्पारण केम ला भधेज्ा चप्रापऐे यिमके मरू भ. पण अहदीदूव' था... | निर्यदेशदभारिस-किर- , _ कमरूर शुद्धिने, भमो.) জী राणीनो भषाइ पिधेषातु-कप पविद्धौचरनिमंछ जेमी मीडे | भधिकम्‌-मेम विशेष दीति. एदा. | থাছ ধীন, निश्चितस्ध्दास- ररेसित्तीस्विंदरएका... | अधिएति:-स्वामी- झम्मीकपुअस्‍कमछनों | शोणरणमतिमस्माणे- | शीजितानामूल्थी जि- सप्र. कना जेवी. मोगा. आलपाली-श्यरो. | भखय्म्नन्नी ফাক, स्वःसद-देव, কাসিম, धरकमारी, पत्पाद पादप था शुचिरुचिनियिताम्मोजपुआलवाली 'सम्मृ्धा पिस्डो भटमुइटइटेर्नियदशदमारी: 1 संसिक्तों शोणरज्नप्रतिममसरुचः सत्म्रवारापलीब- द्वततः शुद्धि विधेयादधिकमधिपतिः थ्रीजिनानामसी व! ॥ १६१॥ अ्ध--निर्मेल दीफिवड़े ब्याप्त एड कमलोना समूहरूपी क्याराबारा, किरणोरूपी पाणीनों मबाह जेमायी नीछब्ट छे एवा अने देशेना महक उपर रहेला उत्तम ध्ुकुटरूपी पशाभोकड़े तिचाएला, एषा वृक्षता जेवा जे प्रभुगा चरणों उत्तम एछकनी पढ़ें झागेहना बेदी न«नी कान्तिने घारण करेछे ते जिनाधिरति तमारी कर्ममल्प्रश्नलवरूप शुद्धि करो ০৮ 2 ^ ४




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