गुरु गणेश जीवन दर्शन | Guru Ganesh Jeevan Darshan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
इसीलिए कहा गया है -
तपसा धार्यते पृथ्वी
पृथ्वी तप से ही स्थिर है, तप प्रभाव से ही समस्त जोव-जगत्
चुलायमान है, गतिशील है तपोबल से ही समस्त सृष्टि नियत क्रम पर चल
रही है।
तप की अचिन्त्य महिमा का साक्षाद् दशन होता है--तपोधनी गुरु
गणेश के जीवन मे 1
तप की तेजस्विता उनके जीवन पट पर जरीके धागो की तरह चमकती
हुई प्रतीत होती है ।
दया की मघुरिमा उनके अमृत वर्षी चक्षुओ से जैसे प्रतिपल प्रवाहित
हो रही थी ।
करुणा, परोपकार और त्याग की सुरसुरी उनके अन्त करण मे सतत
प्रवहमान थी 1
वे निस्पृहं फक्कड ये, सत्य को कहने मे स्पष्ट बिना लाग लपेट के,
सत्य की अमृतगुदी पिलाने मे विश्वास करते थे ।
सम्यग् दशेन, सम्यग् ज्ञान शौर सम्यग् चारित्र का त्रिभुज ही उनके
जीवन गणित का भरल सूत्र थः 1
मिथ्या आडम्बर, अन्धविश्वास, मिथ्यादृष्टि देवो की. उपासनाके वे
कट्टर विरोधी थे ।
वे सत्य कां सरल पथ बताते ये ।
वे तप का एकमेव सम्बल देते थे ।
त्याग और करुणा का जीवन व्रत देते ओौर बस, जो सत्यको
समर्पिते हो गया, तपो देवता के चरणो मे एकनिष्ठ भाव से अर्पित हो गया,
उसके द ख, दारिद्रय, भय, सकट, विपत्तियाँ सब छिन्न-विच्छिन्न हो गये ।
गुरु को की छृपा प्राप्त करने का एकमात्र सागे था--तप साधना, सम्यग
श्रद्धा और सत्य उपासना, म्रुख॒पत्ति, खहर गौ-सेवा--थयही उत्तकी पजा की
दक्षिणा थी, यही उनकी तपोयज्ञ की'आहुति थी। রি ^
जैन अ्रमण परम्परा के इतिहास मे, बड़े-बड़े मात्रिक, चमत्कारी
सिद्ध पुरुष, रस-सिद्ध विभृति सम्पन्न ४
तप कना से विघ्न-भय-वाधामो ९ বং गोश ह, भाग गाज
को दूर कर चमत्कार पे
साधक विरल हुए है। दु पदा करने वलि
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