गुरु गणेश जीवन दर्शन | Guru Ganesh Jeevan Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) इसीलिए कहा गया है - तपसा धार्यते पृथ्वी पृथ्वी तप से ही स्थिर है, तप प्रभाव से ही समस्त जोव-जगत्‌ चुलायमान है, गतिशील है तपोबल से ही समस्त सृष्टि नियत क्रम पर चल रही है। तप की अचिन्त्य महिमा का साक्षाद्‌ दशन होता है--तपोधनी गुरु गणेश के जीवन मे 1 तप की तेजस्विता उनके जीवन पट पर जरीके धागो की तरह चमकती हुई प्रतीत होती है । दया की मघुरिमा उनके अमृत वर्षी चक्षुओ से जैसे प्रतिपल प्रवाहित हो रही थी । करुणा, परोपकार और त्याग की सुरसुरी उनके अन्त करण मे सतत प्रवहमान थी 1 वे निस्पृहं फक्कड ये, सत्य को कहने मे स्पष्ट बिना लाग लपेट के, सत्य की अमृतगुदी पिलाने मे विश्वास करते थे । सम्यग्‌ दशेन, सम्यग्‌ ज्ञान शौर सम्यग्‌ चारित्र का त्रिभुज ही उनके जीवन गणित का भरल सूत्र थः 1 मिथ्या आडम्बर, अन्धविश्वास, मिथ्यादृष्टि देवो की. उपासनाके वे कट्टर विरोधी थे । वे सत्य कां सरल पथ बताते ये । वे तप का एकमेव सम्बल देते थे । त्याग और करुणा का जीवन व्रत देते ओौर बस, जो सत्यको समर्पिते हो गया, तपो देवता के चरणो मे एकनिष्ठ भाव से अर्पित हो गया, उसके द ख, दारिद्रय, भय, सकट, विपत्तियाँ सब छिन्न-विच्छिन्न हो गये । गुरु को की छृपा प्राप्त करने का एकमात्र सागे था--तप साधना, सम्यग श्रद्धा और सत्य उपासना, म्रुख॒पत्ति, खहर गौ-सेवा--थयही उत्तकी पजा की दक्षिणा थी, यही उनकी तपोयज्ञ की'आहुति थी। রি ^ जैन अ्रमण परम्परा के इतिहास मे, बड़े-बड़े मात्रिक, चमत्कारी सिद्ध पुरुष, रस-सिद्ध विभृति सम्पन्न ४ तप कना से विघ्न-भय-वाधामो ९ বং गोश ह, भाग गाज को दूर कर चमत्कार पे साधक विरल हुए है। दु पदा करने वलि




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