सुहागिनी तथा अन्य कहानियाँ | Suhaginee Tatha Anay Kahaniyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Suhaginee Tatha Anay Kahaniyan by शैलेश मटियानी - Shailesh Matiyani

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शैलेश मटियानी - Shailesh Matiyani

Add Infomation AboutShailesh Matiyani

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अपनी एक लम्बी मनोयात्ना पूरी बर चुक्ने को सी थकान मे, आखिर योने-- सोनी, माफ करना पडिताडपन मे लिए । माज तुमसे कुछ भी छिपा- ऊँगा नहीं । 'छिपाऊँगा नही ?” बहते कहते, धरणीघरजी का गला कुछ खुल आया । धीरे धीरे शात आंखो को सुप्रिया की भोर उठाते वोले-- उन्नाहना गलत नही, सोनी भग्र सच है कि मेरे सामन तुम्हें 'टालरट” करने की 'प्राब्यम' उतनी नही बल्कि असल बात है यह कि मैं खुद को 'टालरेट” नही कर पा रहा । तुम्ह नही सह पा रहा होता, तो या तुम्ह अपने अनुशाप्तन से रखने की या खुद तुम्हारे अनुकूल हो रहने की कोशिश करता 1 मगर मैं तुम्ह अपने नहीं, चल्कि अपने को तुम्हारे लिए बोझ महसूस वरन लग गया ।/ लेकिन डी० डी०, वजह ता यही है न कि तुम्हारे मन मे कही यह शुवहा भर गया है कि मैं लूज करक्टर' की हो गई। रियली इट इज ए वडर फार मी, डी० डी०, कि मेरे लिए अपने हिंदू धम और सारी जात विरादरी को छोड़ देनेवाले तुम अब इस कदर शक्‍को होते जा रह ? कभी तुमने इसी बात पर अपनी वाइफ' को छोड दिया कि वह निहायत बैक्वड और दकियानूसी भौरत है। तुम्हे 'डीपली लव! नही करती । तुम्हे आमलेट बनाकर नही देती, तुम्हारे साथ घूमने फिरमे नहीं जाती है और अपने हिंदू धम का तुम 'हेट' फरते कि तुम्हारे विशदरी प्राह्मण बहुत ही ज्यादा दकियानूत और “मीन मंटे- लिटी' वाले तुम्हारे मेरे बीच के लव एफेयर से चिढ़ते ह ? मगर मुझे लगता है वह सब तुम्हारा दिखावा ही पा। एम तो तुम्हारा जैसेश्तसे 'कनविसा करके, मुझसे अपनी “लस्ट' को पूरा करना था बस 1 सुत्रिया की आँखों से आँसू लुढकते जा रहे थे और मेज पर रखी हथेलियो की पीठ पर गिरते जा रहे थे। उँगलियो को मेज पर टिकाय॑ टिकाये वह हथेलियो को, पानी से बाहर निकलकर जोर जोर से सास लेती मेढकी की तरह हिलाती चली जा रही थो । धरणीधर कोई उत्तर नही दे पाये, तो फिर बीली “मैं सीधे दफ्तर ही जान वाली थी, मगर आज सवेरे सवेरे जसी आँखी से तुमने মুল देखा, पही 'फोल' होता रहा कि तुम्र भेरे पीछे लगे हो और दपतर तक भी पीछा करोगे | इतनी 'जीलसी', ऐसी 'मीन मेटेलिटी' और “इस्पेशींस” ता तुम मे नही होनी चाहिए, डी० डी० ? मुझे तो देखकर हैरानी होती है कि विसी जमाने मे अग्रेजी रहन सहन और 'सोसाइटी-लाइफ! के हिमायती तुम आजकल कभी मेरी एब्सेंस पाते ही चुपके से पडिताऊ घोती पहनकर खिचडी प्रकान लगते हो । 'डाइनिंग टेबिल, पर खाने की जगह लकडी का पट्टा लेकर कठफोडवा / १५




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now