वाजसनेयोपनिषद् | Vajsneyopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
48
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९५) *
गवति सलेव चेष्टां कर्त शकनुवीन्तयभादस्पाग्निस्तपाति
पातितयेः । भयादिन्द्रअवायुभ्र मृत्युधावतिपश्चम इत्यादिशुती
यदुक्त तदेवात्र तस्मिन्नपों मातरिख्वादधातीत्यनेनोच्यते। सवे-
प्राकाशादिक परमात्मसत्तयेव स्वस्वकायेसाधर्क सम्पद्यते पर-
प्रात्मनएवं स्वमूललात ॥
५ भापार्थ*-इस से पूर्व तृतीय मन्त्र में आत्मघाती জনা কী
देशा दिखायी हे सा वह आत्मतत्व कफेसा है यह दिखाते हैं
जो ब्रह्म ( मनसः ) भोतिक इन्द्रियो का राजा दिषयो तक पहुंच
ने बाला है उस मन से भी ( ज्वीयं : ) भत्यन्तवेग वाला अथात्
जहां मन की गति भी नहीं वहा परब्रह्म पिरेसे ख विद्यमान है ।
किसी विषय के स्मरण की इच्छा ल मन हजारों कोश पर জাবি
शीघ्र पहुंचता है अब तक मन वहां पहुंचता ইবি से भी पदिले
आत्मा आगे अखंख्य कोशो तक ध्यापक होने से विद्यमान है इस
कारण मन से भी आत्मा अति वेगवान् है । ( पकम् ) चह घह्य-
एक अद्वितीय है (अनेजत्) कापना चायमान दोना सोपाधिक का
धर्म है उस कम्पन से घह्ट रहित है इस लिये वह वस्तुत £ লিহ-
पाधिक है अथवा पक होने से सर्वथा निभेय है क्योंकि सदा ही
1 दूसरे से भय द्वाता है जब उस से भिन्न काई वस्तु दी नहीं कि जि-
सस भय हो इसलिये वही एक सर्वे रूप निर्नय है | परमात्मा
रोकिकं पदाथा से विखक्षण दै लोकम जो अति वेगवान् वस्तु
| है वह कियाणुण से युक्त देने के कारण कम्पन ओर विकार वा-
छा दोता है ओर ईद्वर अति वेगवान् होने पर भी कम्पन अर
विकारः वाखा नदीं हाता अतिवेगवान् चौर कम्पन इन दो चिरेवणो
से चिरोधा्ङ्कारः प्रतीत दता है 1 (पनत्) मन करी गति को उच्छं
घन करने वाला दाने से उस को (देवाः) विषयो करा वेध करने
` वाढ इन्द्रिय ( न, आप्नुवन् ) नहीं प्राप्त दो सकते ! यपने २ गन्धा
दि विषय के अण करना उस २.इन्द्रिय का इन्द्रियपन दै अत्मा
किसी इन्द्रिय का आद्य विषय नर्द दै जिस को इन्द्रिय पराप्त हो
सक । यद्यपि ( पूयैम् , अपैत् ) इण्द्रिय ओर विपयादिं मे आत्मा
पहिले से ही आकाश के तुल्य ब्यापक है तथापि इंन्द्रियों का वि-
पय न होने से कान से रूप के समान इन्द्रियों से नहीं ग्रहीत हो-
ता 1 वह ( तिष्ठत् ) अचर ब्रह्म ( धावतः ) अपने २ विषयो की
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