हिन्दुस्तान की पुरानी सभ्यता | Hindustan Ki Purani Sabhyata

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Hindustan Ki Purani Sabhyata by बेनी प्रसाद - Beni Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५) जैन राजा खारवेल का दाथीगुस्फा लेख है। पद्चिली ई० सदी के মাহ গাম, ছাগত इत्यादि नरेशों के, चाथी सदी के याद गुप्त महा- राजाधिराजों के, और उसके बाद १२५वाँ सदी तक देश के प्रायः सब ही राजवंशं के शिलालेख, ताश्नप्र इत्यादि बहुतायत से मिलते है । बङ्गाल पशियाटिक खु सखायदी. रायल एशियाटिक सुखा- यटी और उसकी बम्बई शाखा, एवं बिहार और उड़ीसा रिसर्च खुलायटी की,पश्षिकाओं में, कापंस इन्सक्रिपशनम्‌ इन्डिकेरम्‌, इस्डियन एन्टिक्वेरी और एपिप्नं फिया इन्डिका में ऐसे हज़ारों लेख बीसों विद्वानों ने सम्पादन करके अ्रपनी टीकाओं के साथ छपाये हैं। देफ्खिन के लेख जो संख्या में और भी ज़्यादा हैं और जे। १७ वीं खदी तक पहुंचते हैं एपिग्राफिया कर्नाटिका, साउथ इन्डियन इन्सक्रिपशन्स और मद्रास एपिश्न फिस्ट्स रिपोर्ट में भी प्रकाशित हुये हैं। इन लेखों से सैकड़ों राजाओं और मद्दाराजाधिराजों की तिथि और करनी मालूम पड़ती है, राजशासन फा चित्र खिच जाता है और कभी २ समाज, आधिक स्थिति और साहित्य की बातों का भी पता लगता है| यदी प्रयोजन सिक्कों और भुहरों से भी सिद्ध होता है |जो ई० सन्‌ के प्रारंभ के लगभग से पञ्चाव, सिंध, तिक भोर सहर मालवा इत्यादि प्रदेशों में मिलते हैं। कमी कभी तो यह सिक्‍के धार्मिक ओर सामाजिक समस्याओं को मानो चमत्कार से हल कर देते हैं । सामाजिक और धार्मिक इतिहास के लिये पुरानी मूर्तियों और भवनो के ध्व॑साचरशेष भी बहुत उपयोगी हैं । भवन भर पत्तिं तक्षशिला, सारनाथ, पाटलिपुत्र श्चादि को खोद कर जो मकान, बरतन, भूतिं वगैरद




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