वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान | Veer Shiromani Prithbi Raj Chauhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)2 चालुक्य विजय
मुहम्मद गौरी नै सन् 1178 में गुजरात को रौंद दिया था| गुजरात के चालुक्य
राजा अपनी इस क्षति की पूर्ति चौहानों के राज्य से करना चाहते थे। वे अपने राज्य
का विस्तार आबू से नागौर तकं करना चाहते थे। नागौर चौहानों के अधीन था अत
क्षतिपूर्ति की भावना से चालुक्य उत्तर में राज्य विस्तार योजना बना रहे थे | पृथ्वीराजं
का अल्पायु होना उनके लिये एक स्वर्णिम अवसर बन गया ओर वे नागौर पर आकमण
कर वेठे। अतः पृथ्वीराज को अपने पुराने शत्रु चालुक्य से युद्ध करना आवश्यक हो
गया। कुछ समयकालीन कथाएँ भी इस प्रकार की हैँ कि पृथ्वीराज का पिता सोमेश्वर
नागौर की रक्षा करते समय चालुक्यँ के राजा भीमदेव द्वितीय के हाथों से मारा गया
था | किन्तुं एतिहासिक प्रमाण यह बताते हैँ कि भीमदेव का देहान्त तो सोमेश्वर से दो
वर्ष पहले ही हो गया था। यह सम्भव हो सकता है कि सोमेश्वर भीमदेव के
उत्तराधिकारी जगदेव प्रतिहार के हाथों मारा गया हो। जो भी बात रही हो, पृथ्वीराज
के लिये आवश्यक हो गया कि वह अपने पिता के हत्यारों से बदला ले | यदि पृथ्वीराज
इनका दमन नहीं करता तो जगदेव नागौर लेकर ही मानता | अतः नागौर की रक्षा और
अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये यह आवश्यक हो गया कि पृथ्वीराज
गुजरात के चालुक्य राजा जगदेव को पराजित कर अपने अधीन कर ले।
पृथ्वीराज रासो' में चौहान-चालुक्य युद्ध का वर्णन मिलता है। उसी आधार
पर डॉ. दशरथ शर्मा यह कहते हैं कि नागौर पर जगदेव ने आक्रमण किया और दुर्ग
के बाहर युद्ध मे दो योग्य सेनापति मारे गये। पृथ्वीराज ने इन योग्य सेनापतियो की
स्मृति में बीकानेर डिवीजन में चारलू नामक गाँवे में 2 शिलालेख खुदवाये | ये लेख
विक्रम सम्वत् 1241 के हैं जो इस युद्ध के बारे में पर्याप्त जानकारी देते है। इस युद्ध
के बारे में खरगछा पट्टावली से भी जानकारी मित्रती है। इस ग्रन्थ का लेखक
जिनपाल है। इस प्रकार नागौर में लड़े गये चालुक्य-चौहान युद्ध के बारे मेँ चार सा
नो से सामग्री मिलती है। चारलू गाँव के दो शिलालेख, जिनपाल द्वारा रचित खरगछा
पट्टावली और पृथ्वीराज चौहान ने नागौर के किले के बाहर लड़े गये घमासान युद्ध
मे गुजरात के चालुक्य राजा जगदेव को पूर्ण रुप से पराजितं कर उसे सदा के लिये
अपना सेवकं बना लिया! जिनपाल लिखता है कि चालुक्य शासक ने अपने मुँह में दाब
दबा कर अपनी जान की भीख प्राप्त की} इसी वर्ष पृथ्वीराज ओर जगदेव मेँ स्थाई
15
User Reviews
No Reviews | Add Yours...