सूर सन्दर्भ | Soor Sandarbh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १२ )
स्थुल आदर्टवादी ओौर शुप्क्र तोतिवादी विचारणा हे वह काव्य के मूल्य
स्किए में बढ़ो हद तक बाधक हो रही है। किन्तु इस विचारणा से यह
सारा युग आक्रान्त है। सूक्ष्म किन्नु जीवन की गहराई में स्थित स्थिर
मनत्रेगों का उदघाटव ओर जित्रण क्या जीवन-परिस्थितियों की व्यापकता
और दिल्तार का बदला नहीं चुका लेते; लोकथर्म, मर्यादा और शील के
न्छिःण की अपेता वाल्यकाड की निद्द्ध क्रीड़ाीओं, नतटखटपतन और
नेसगिक स्नेहोंद् सका चित्रा छुण और ग्राम्य तथा वन्य जीवन की सहज
सुपत्मा का प्रदर्शन क्या काव्य और कला के लिए कम उपयोगी या उत्कर्ष-
साधिक डे ? प्रबन्ध और मक्तक के बाहरी भेंदों का आग्रह करने की अपेक्षा
काव्य के अन्तरंग गूणों--रस की प्रगाढ़ता और उसकी मानस-प्रक्षाऊन
क्षमता--की परीक्षा क्या कल-विवेचन के लिए अधिक आवश्यक
नहीं ? पर हम कब इन कार्यो मे प्रवृत्त होते ह ? कव तटस्य होकर ओर
आड़े आनेवाली आदर्शवादिता को किनारे रखकर, विशृद्ध मनोवेज्ञानिक
दृष्टि से काव्यचर्चा करते हैं?
सूरदास जी का सूरसागर केवल काव्य ही नहीं है, वह धामिक काव्य
भी है। धामिक ग्रंथ की दष्टि से उसका सम्मान जन-समाज में तो है किन्तु
विद्वानों के बीच अकसर इस विघय के विवाद उठा करते हें कि सूरसागर
की गणना धामिक काव्यग्रंथों में होनी चाहिए या नहीं ? धामिक काव्य
के सम्बन्ध में इन विद्वानों के विचार बहुत कुछ विलक्षण हैं। अधिकांग
लोगों का ऐसा ख्याल है कि त्याग, संन्यास और वैराग्य की शिक्षा देने-
बाली रचनायें ही धामिक काव्य कहला सकती हैं। इस दृष्टि से हिन्दी
में कबीर और दाद् आदि को ही धार्मिक कवि লালা जा सकता हूँ।
तुलसीदास को हम इस श्रेणी में इसलिए स्वीकार कर लेते हैं कि उन्होंने
नीति और मर्यादाबद्ध राम के उदात्त चरित्र का चित्रण किया है। शेषांश
में हम सूर, मीरा आदि की उन रचनाओं को भी धामिक काव्य कह लेते हूँ
जो भजनों के रूप में प्रचल्लित हो गई हैं तथा जिनम किसी चरित्र-विशेष
का उल्लेख नहीं । किन्तु जब श्रीकृष्ण के और गोपियों के चरित्रों की बात
आती हे ठव हमारे विद्वान लोग पशोपेश में पढ़ जाते हें। वे या तो
कृष्ण-गोपी-चरित्र को आत्मा परमात्मा का रूपक कहकर टां देते
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