जज्बाते बिसमिल दूसरा भाग | Jjbate Bismil (Part 2)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १४ |]
रूयत्य पाटशालाके जन्म दाता थे, उनका जन्म दिवस तीसरी
दिसम्बर को हर साल मनाया जाता है। अकसर विद्यार्थी डनकी
प्रशंघा में कविताये' पढ़ते है “बिसमिल” साहब इस वार्षिक
उत्सव मे कविता पठने का साहस तो न करते थे, मगर अपने
सहपाठियों की कविताये खनने कं बड़े प्रेमी थे । अकसर
विद्यार्थियों की कविताश्रों (की प्रशल्ा मास्टर लोग किया करते
थे तो इनके दिल में मद विचार उसी समय उठता था कि
यह भो कवित। किया करे । ए $ तरह की लहर दिल मे उठती
थी और डठकर र$ जाती था | जब ये मिडिल्न क्लास मे थे
तब इनके बड़े ज्ञोर की माता निकली, मरने से बचे । दिमाग
पर इसका बडा अछर हुआ और इस फ़दर कमज़्र हो गये कि
लिखने-पढ़ने से दिमाग चक्कर खान लगा । इसी सबब स
मिडिल क्स क इम्तिहान में ये नाकामयाब हुए। नाकमयाबी
से इनके दिल पर बड़ा दख इश्रा। ये यहां तक हताश हुए कि
पढ़ना-लिखना छोड़कर घर बैठ गये | तीन चार बरस तक
यार-दोरूतो मे व्यथं ही समय व्यतीत क्रिया । अच्छी बुरी सब
तरह को सह्वतों का तज़रुबा हुआ । इनके पुराने मित्र बाबू
ओकारनाथजो गुप्त से उसी जमाने में इनका परिचय हुआ ।
उनकी दुकान पर इनकी रात-दिन की बैठक रहा करती थी।
गुप्तजो भो बड़े साहित्य-श्रेम्मी है। उद्' कबियों के दीवान श्रक-
सर कुछ और लोगो के साथ बैठ कर पढ़ते थे और इस तरह
कविता का आनन्द उठाया करते थे। इससे मालूम होता है कि
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