पद्य - प्रवेशिका | Padya-praveshika

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Padya-praveshika by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লাহলল্ব हिमालय के आंगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार, उषा ने हँस अभिनंदन किया ओर पहनाया हीरक-हार | जगे हम, रगे जगाने विश्च, लोक मँ फैल किरि आलोक; व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसति हो उठी अशोक। विमल बाणी ने वीणा ली कमरू-कोमरू कर में सप्रीत, सप्त स्वर सप्त सिंघु में उठे, छिडा तब मधुर साम-संगीत | बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रख्य का शीत, अरुण केतन लेकर निज हाथ वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत | सुना है दधीचि का वह त्याग हमारी जातीयता विकास, पुरंद्र ने पवि से है लिखा अस्थियुग का मेरा इतिहास | धमे का ले-लेकर जो नाम इजा करती बलि, कर दी बंद, हमीने दिया शांति-संदेश्च, सुखी होते देकर आद्‌ | प, म---£ 9




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