आज के सन्दर्भ में समन्वित योग | Aaj Ke Sandarbh Mein Samnvati Yog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन ऑर उसका नियंत्रण वस्तु और स्थिति को दूर करनी पड़गी ।! यदि आप अपने मन का सूक्ष्म विश्लेषण करेंगे तो आपको अनुभव होगा कि राग और इंष ये दोनों ही भ्रामक संस्कार हैँ! जो सुख ओर दुःख का कारण प्रतीत होता है वह वास्तव में बैसा है नहीं । जो सतह पर दिखाई पड़ रहा है वह रामक ओर अवास्तविक है। जेसे ही आपकी बुद्धि विकसित और परिपक्व हो जाएगो तो आप अनुभव करेंगे कि अधिकांश लोगों के द्वारा जिसे सुख और आनन्द माना जाता है वह वास्तव में दु.ख का ही एक रूप है। सुख का एक अभिप्राय यह भी है कि उस वस्तु को अपने पास सुरक्षित रखने का प्रयास | एक बार उसे अपने पास सुरक्षित करने के पद्वात भौ आप निरन्तर इस भय के दबाव में रहते हैं कि कोई दूसरा इसे आप से ले नले। जिसे आप सुख का कारण समझते हैं उसे प्राप्त करने तथा प्राप्त करके उसको रक्षा करने में आपकी बहुत शक्ति का अप- व्यय होता है तथा आप तनाव में रहते हैं । इसके अतिरिक्त जिन इन्द्रियों की सहायता से वह सुख उपलब्ध होता है वह क्रमश. दुबल हयो जाती है । उदाहरण के लिए जब आपके कान कमजोर हो जायेंगे तो मधुर सज्भीत का अनन्द आप नहीं ले सकते। जब आपकी पाचन-शक्ति अत्यन्त दुर्बल हो जाएगी तो बहुत स्वादिष्ट भोजन आपको कोई अनन्द नहींदे सकता । विषय सुख अत्यन्त क्षणिक और सुख के आवरण में दुःख के ही प्रतिरूप हैं । इसलिए सभी ऐइन्द्रिक सुख आभासी, सतही और अआमक हैं। माया के कारण अचेतन मन में राग-द्रष का संस्कार बनता जाता दै । अधिषाप के रूप में प्राप्त हो रहे वरदान से सर्वथा अज्ञान रहने के कारण आप में दष उत्पन्न हो जाता है। आनन्द के रूप में अभिषाप को स्वीकार कर आप अनजाने ही राग संस्कार को ओर तीत्र बना रहे हैं। ये दानों ही सानसिक कलेश हैं । जब राग और दोष बने रहते हैंतो आपमें अभिनिवेश उत्पन्न हो जाता है। दूसरे शब्दो मे अप कमं बंधन में उलझ जाते हैं। आप में यह भाव उत्पन्न हो जाता है--'मैं यह- शरीर हु । जब यह मृत्यु का সাজ बन जाता हैतो मेरा अन्त हो जातां।” इसलिए आप मुृत्यु-भय से १२




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