हिंदी विश्वकोश | Hindi Vishwakosh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54.31 MB
कुल पष्ठ :
768
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रक्तकाश्चन-रक्तकाश
सेवन करानेसे रेचनकार्यकी ऐोपकता होती है। छोठ,
पुष्प या छूठको चावलके घोष शठमें पीस कर रुफोटक-
के ऊपर पुलरिसकी तरह प्रछेप देनेसे फोड़ा पक जाती
है तथा पीप पतली निकलती है। छाढका गुण-धातु-
परिष्कारक, वढवद्धक और मलरोधक है। गलगणड,
चर्मरोग भीर क्षतादिमें यह विशेष फलप्रद हैं। शरीरके
रक्त और रसको अविष्कृत रखनेके कारण कुछ्ठादि रोगमे
थी इसका प्रयोग किया जाता है। सूखी कछी शैत्य
गुणविशिष्ट और धारक तथा उद्रामय रोगमें विशेष
उपकारी है। इससे पेटके कोड़ दूर होते हैं ।
प्रारम्भ अर्थात् फाल्युनके मददीनेसे ही यह
पेड़ पुष्प और फलके वोकसे कुक जाता है । दो महीनेके
भोतर वोज पकते हैं । कोई कोई पशुमांसके साथ इसको
कलो रीध कर खाता है|
इसकी लकड़ीका रंग घूसर भर मध्मभाग काठा
होता है। यह मजबूत हो होतो है, पर छोटे छोटे खंडोंमे
विभक्त हो ज्ञानेसे किसी कापमें नहीं आती । खेतिद्रके
भीजारोंको मूठ साधारणतः इसीसे बनती है। बौद्ध-
युगके मास्करकार्योमें जो. चक्ष देखा जाता है, उससे
इसको पचित्रताका अनुमान फिया जाता है ।
इस श्रेणी के चुक्ष 8 श्रेंणीसे बहुत कुछ
पिठते जुरते हैं। बहुत थोड़ा अन्तर रदने पर भी उसे
छोग रक्तकाश्रन फहने हैं । स्थानीय नाम,
पज्नावी-कैराल, कराड, करडी , !
कोनियर, कन्दून, सैरबाल, सोणा , नेपाल--सैरालो ,
लेपचा--कचिक, रक्तकाश्चन, कैराल,
कोल-बुरुजू , छोहरइंगा-कैनार , सन्धाल-सिद्धि )
पाड़ ; ; गोंड़--केद्वरी , मराठो- |
रक्तचन्दून, अमत्ति, रक््तकाश्न, देवकाशन ,
भारेमन्दरे ; तेलगू--कांश्चन, पेड़ भार,
वेदन्त चेट्टू , कचाड़ी-छुराल, काश्नीवाल , ब्रह्म-
महदउयकाणि, प्रहब्लेगणि ।
उपरोक्त चुझको तरह इसके गोंद और छिलकेका
शुण और प्रयोग प्राय; एक-सा हैं। छिछका धारक,
जड़ चायुनाशक गौर वलवद्ध'क तथा फूल विरेचक होता
है। छिठकेके काढ़ से घाव घो आ जाता है । इसके फल-
को बहुतेरे रोध कर खांते हैं। के
ह, चामक उस जातिकें चुक्षको छोग॑ं
कानून वा काश्चनी कहने हैं । इसके छिलकेके रेशेसे
रस्सी बनाई जाती है। यह उदरामय और
है। यकृतके प्रदाहमे इसके मूठके छिछकेका काढ़ा विशेष
फलप्रद है।
र्क्तकांस्ता (स'० रही ०) रक्त रक्तचर्ण: कान्तः दुन्तैइस्या।
रक्तपुननंवा, छा गद्हपूरना ।
सक्तकाश-रोगविशेष। एढोपैथिकके मतसे इसे सथ९-
प्राण कहते हैं। करठनाढ़ी श्वास -
नाढी और फुस्फुससे यदि सफेद रक्त निकले, तो रक्तो-
त्काश रोग हुआ ज्ञानना चाहिये ।
पत्ते ऊपर चढ़नेके समय बहुत कॉथनेसे या
खासो रहनेसे तथा अति उच्च खरमें गान करनेसे अथवा
वंशो वज्ञानेसे रक्तचमन हो सकता है। शीताद घून्-
रोग (0पर0018) और शो णितकों तरछ करनेबाछी पीड़ा-
में अथवा रजोरोध होने पर मुखसे खून निकलनेकी
सम्मावना है । करठनाली, श्वासनाढी वा वायुनढी-
में रक्ताधिका, प्रदाह था कर्कटरोगमें तथा फुसफुसभे
( ) सश्चित हो कर उससे प्रदाह, शत,
।. स्फोटक, भाधातवोध और विगछन होनेसे अथवा दाइ-
डेटिड ( 00800 ) छमि और कर्कटरोग रहनेसे रफ़्तो-
त्काश हो सकता है ।
दोनों वक्षावरकक मध्यस्थित स्थान ( 0८085
एप्णा ) के मु दूकके श्वासनालीमें संयुक्त होनेसे इतु-
पिणडके रोगोंमें विशेषठ्ः दुक्षिग कोटरका विध्रद्ध त अथवा
चामकोटरका प्रसारण रहनेसे फुस्फुसीय धमनी ओर
शिराकी पीड़ाभोंमें किसी वायुनलोके मध्य थारासिक
पनिउरिजम दिखाई देनेसे कभी कभी मुखसे रक्त निकठ
कर चायुनढी वा ज्ञाता है। पीछे बह पुन-
रद्रो्ण हो कर हिम्रपूटिसिस, उत्पत्न करता है। खांसी
और अधिक परिश्रम द्वारा रोगकी चुद्धि होती है।
इस थ्याधिमे अकसर फुसफुसकी कैशिकासे तथा
किसी किसी जगह फुसफुसाय धमनीकी छोटी छोटी
फटनेसे रक्त निकछता है । यद्मारोगमें उक्त
धमनीकी शाखा प्रशाखामें छोटे छोटे एनिडरिजा
उत्पन्न होता है। उनके फट ज्ञानेसे अनेक समय अधिक
परिमाणम रक्त निकठता है।
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