भारतेन्दु हरिश्चंद्र | Bharatendu Harishchandra

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Bharatendu Harishchandra  by ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) करना चाहिए ।› कहते है कि बा० हरिश्चन्द्रजी ने उसी समय निम्नलिखित दोहा बनाया । ले ब्योंड्रा ठाठे भए श्री अनिरुद्ध सुजान । बाणासुर की सेन को हतन लगे भगवान ॥ बा० गोपालचन्द्र जी ने बड़े प्रेम से पुत्र के उत्साह को बढ़ाने के लिये इस दोहे को अपने ग्रंथ में स्थान दिया ओर कहद्दा कि (तू मेरा नाम बदायेगा + इसी भ्रकार एक दिन बा० गोपालचन्द्र जी के रचित (कच्छप कथांमृतः क एक सोरटे की व्याख्या उन्हीं की सभा में हो रही थी। भारतेन्दु जी उसी समय वहों आ बैठे ओर सब की बातों को सुनते हुए अंत में एकाएक बोल उठे कि बाबू जी हम अथ बतलाते हैं । आप वा (उस) भगवान काजस वणेन करना चाहते है, जिसको आपने कछुक छुवा है अर्थात्‌ जान लिया है? इस नई उक्ति को सुनकर इनके पिता तथा सभासद्‌-गण चमत्कृत हो उठे ओर इनकी बहुत प्रशंसा करने लगे | सोरठे की प्रथम पक्ति यों है- करन चहत जस चार कछु कछुवा भगवान को । इसी प्रकार एक बार जब इनके पिता तपेण कर रहे थे तब इन्होंने प्रश्न किया था कि “बाबू जी, पानी में पानी डालने से क्या लाभ ?? धामिक-प्रवर बा० गोपालचन्द्र ने सिर ठोक; ओर कहा कि जान पड़ता है तू कुन बोरेगाः। बचपन की साधारण अनुसंघान-का रिणी बुद्धि का यह एक साधारण प्रश्न था, जो इनके जीवन में बराबर विकसित होती गई थी। यह धामिक तथा सामाजिक सभी प्रश्नों के तथ्य-निणय में दृत्तचित रहते थे | भारतेन्दु जी का मुंडन-संस्कार अल्पावस्था ही में हुआ था ओर जब यह तीन वषं के थे तभी इनको कंठी का मंत्र दिया था । जब इनकी अवस्था नव वषं कीथी तभी सुप्रसिद्ध




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