श्री विज्ञानंनौका | Shri Vigyan Nouka
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१द रिज्ञाननाका.
ओंसव्यक्षमारृद्रियकानियदहसर्वेभूतदया ओआजे
वयेलारेअतरतीषेहे ॥ सोवीदाखमिभरसिद्दे ॥ द
याक्षमाअनसयाशोॉचअनायासमंगलूअकार्पण्यंभी
अस्पहायिअएसवेवर्णा श्रमंकेसा धारणधमहे॥ इत्या
दिककरस ओपरमेथ्वरकाध्यानछक्षणउपासनाकोंक
श्वेआदिगाब्दसआचार्यनेंदिखायाहै।तिस नोतस्मा
ते॥ तपयज्ञदानादिककर्मोकेअनुष्ठा नसेंव॒ुद्दिशुद्धहो
येह ॥ नामसैमरुदोपकी नि ट चिरोवेह ॥ ओषडपस!
नार्सेचिचकीचंचलछतादोपदूरीहोंविहे ॥ “ननुकमसे
पित॒लोककीप्रासिवेदमकहिह ॥ यातिकर्मलेअंतःकर
णकीशदिकहनाअसंभवहै ॥ याशंकाकासमाधान
यहहै ॥सकासवुद्धिसिकियेकर्मलेहिउतम छोककी प्रा -
पिवेदनेंकहिहे ॥ निष्कामकमसनहीं ॥ कितु“धर्म
णपापमपनुदाति” इसश्लुतिने धमोनुप्तानसें पुरुपके
. “पापहप्रमुलकीनिवृत्तिहिकहिह ॥ यातेतपयज्ञांदि
कुकमनिंप्कामकूअंतःकरणशद्धिकेहितुह ॥ सो
“यज्ञोदानंतपश्ेवपावनानिमनीपिणां 'यास्मतिवा
क्यसयज्ञदानत्तपदुद्धिमानरकोपावनकरप्रसिद्धकदहा
है॥ यातेंनिष्फामकर्मसेपित॒ुछोकादिककी प्रापिसं
भवेनहीं किंतुअंतःकरणकीशु दिहोवेहे ॥ নালীলানল
होयकेमेक्षहोवेहे यहवेदकासिदांतहै॥ ननुजनका
दिकनकूं कर्मकरकेहीसंसिद्धिस्वृतिमेकहिहे॥ यत्ति
मुमश्षुकूंकर्मसेहीमो क्षद्दी वेगा ज्ञानकरकेक्याहि ॥ या
User Reviews
No Reviews | Add Yours...