श्री विज्ञानंनौका | Shri Vigyan Nouka

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Book Image : श्री विज्ञानंनौका  - Shri Vigyan Nouka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१द रिज्ञाननाका. ओंसव्यक्षमारृद्रियकानियदहसर्वेभूतदया ओआजे वयेलारेअतरतीषेहे ॥ सोवीदाखमिभरसिद्दे ॥ द याक्षमाअनसयाशोॉचअनायासमंगलूअकार्पण्यंभी अस्पहायिअएसवेवर्णा श्रमंकेसा धारणधमहे॥ इत्या दिककरस ओपरमेथ्वरकाध्यानछक्षणउपासनाकोंक श्वेआदिगाब्दसआचार्यनेंदिखायाहै।तिस नोतस्मा ते॥ तपयज्ञदानादिककर्मोकेअनुष्ठा नसेंव॒ुद्दिशुद्धहो येह ॥ नामसैमरुदोपकी नि ट चिरोवेह ॥ ओषडपस! नार्सेचिचकीचंचलछतादोपदूरीहोंविहे ॥ “ननुकमसे पित॒लोककीप्रासिवेदमकहिह ॥ यातिकर्मलेअंतःकर णकीशदिकहनाअसंभवहै ॥ याशंकाकासमाधान यहहै ॥सकासवुद्धिसिकियेकर्मलेहिउतम छोककी प्रा - पिवेदनेंकहिहे ॥ निष्कामकमसनहीं ॥ कितु“धर्म णपापमपनुदाति” इसश्लुतिने धमोनुप्तानसें पुरुपके . “पापहप्रमुलकीनिवृत्तिहिकहिह ॥ यातेतपयज्ञांदि कुकमनिंप्कामकूअंतःकरणशद्धिकेहितुह ॥ सो “यज्ञोदानंतपश्ेवपावनानिमनीपिणां 'यास्मतिवा क्यसयज्ञदानत्तपदुद्धिमानरकोपावनकरप्रसिद्धकदहा है॥ यातेंनिष्फामकर्मसेपित॒ुछोकादिककी प्रापिसं भवेनहीं किंतुअंतःकरणकीशु दिहोवेहे ॥ নালীলানল होयकेमेक्षहोवेहे यहवेदकासिदांतहै॥ ननुजनका दिकनकूं कर्मकरकेहीसंसिद्धिस्वृतिमेकहिहे॥ यत्ति मुमश्षुकूंकर्मसेहीमो क्षद्दी वेगा ज्ञानकरकेक्याहि ॥ या




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