नंदिनी | Nandani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुक्तक प्रृथ्वी और आकाश दोनों में एक साथ ही अपने पंख फैलाता है । पृथ
का साथ न छोड़ते हुए भी बह आकाश में ऊँचो से ऊँची उड़ान भरने र
अम्यासी है। आकाश की निर्मल धूप में अपने आप को विलीन करने :
श्रमिलाषा से ऊपर उठकर भी वह प्रथ्वी क साथ श्रपना सम्बन्ध बन
रखता है | शुद्ध मुक्तक की यद्दी सब से बढ़ी परख है कि न तो उसमें पार
अंश की अधिक गंध हो और न आकाश की श्रस्तित्वहीन तरलता । इस प्रव
की सफल कविता अत्यन्त कठिन और विरल होती है। श्री चन्द्रकुंबर
मुक्तक इस प्रकार की विलक्षण रस-प्रतीति तक हमें ले जाता है। वह ऊपर
वेदनामय जान पड़ता है; पर उसकी यह करुणा कहीं मी जीवन के आर
निभौर का निराकरण करती हुई नहीं जान पड़तो | :कदुण काव्य के इस र्
की भरपूर प्रतीति हमें कालिदास के मेघदूत में प्राप्त हती हैं। चन्द्रकुवर की का
में दार्शनिक मतंवाद दूंढ़ने का प्रयास इस कविता के साथ अन्याय करना होः
मुक्कक कविता तो आनंद की भड़ी है, इसी में उसकी सफलता को इति
जाननी चाहिए । [सि
चन्द्रकुंबर हिमवन्त की फूटती हुई जलधाराशों ओर ऊँची उठती
चोटियों के बीच कहीं उत्पन्न हुए। केदारनाथ के पास पंवालिया उनका 3
था जिसे एक मुक्तक लिखकर उन्होंने अमर किया है। प्राचीन भारतीय इतिः
में एम, ए. की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे लखनऊ विश्वविद्यालय में
पर विपरीत स्वास्थ्य ने उन्हें फिर हिमालय के कोटर में ले जाकर, बन्द
दिया। सात वर्षो तक रोगों से युद्ध करते करते चोद् सितम्बर उन्नीस
_सैंतालीस को गाते हुए उनका अन्त होगया। 3
.. हिमालय के उत्संग में भरा हुआ जो असाधारण कल्लोल श्रौर कलरब
साथ ही उसका जो धीर मौन है, उन दोनों से चन्दरदवर का हृदय पूर्ण *
हिन्दौ-जगत् में बाहर आकर वे विज्ञापनन्यश की खोज में न निकल सके,
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५.
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