अर्थ शास्त्र परिचय | Arth Shastra Parichay

Arth Shastra Parichay by सत्येन्द्रनाथ सेन - Satyendranath Sen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिभाषा ओर तत्सम्बन्धी कुछ बातें द करते हूँ । ऐसे नियम जो सव जगह छागू हो घकं । इसलिये हम अ्ंशास्य के विज्ञान होने दा अधिकार इस कारण नही छीन सवते कि उसमें निदचयता तया सविप्यवाणी कौ शिति नहीं 1 आधिक नियमों फो प्रहृति मयवा विरोवता (20815 06 73001201201 1.998)--प्रत्येवः विज्ञान बे अपने कुछ नियम होते हूं । अर्थ शारित्रया ने भी अर्थ गास्थ के सम्बन्ध में बुछ नियम बनाये हूँ । अब प्रइन यह है कि नियम शब्द के इन नियमों की विशेषता कया है । नियम (179) शब्द विभिन्न अर्य कै कई अयं होते हं। एकतो समाज द्वारा बनाये हुए লিন হীন ই, লিলৰ अनुसार समाज री कामो करने यानकए्नेकोकटता ह । इवलण्ड का कामन ला (प्फ पप) इसौ प्रकार या निमम । दूसरे नियम इस श्रवार के होते हूँ जो किसी दाम को चलाने को तरस बतलाते है। जैसे, भ्रिकेट के खेल के नियम यह बतलाते है कि खेल क्सि प्रकार खेलना चाहिये | तीसरे नियम का अथ॑ धारासभा द्वारा बनाये कानून से होता हे, सौर अन्तिम बेर्य-कारण के आधार पर दो प्ररिस्थितियों या घटनाओ में जो सम्बन्ध होता है, उपे नियम कहते हं 1 जेर, मोतिकदास्य के नियम ॥ अपंणास्त्र के नियम्र केवल अन्तिम अं मे हौ नियम कहलाते हू । वे कर प्रवृत्तियो के कयनपात होते हे। जंसे कि अमुक परिस्थितियों यें हम मनुष्यों के एक समूह या समाज से अमुक प्रकार के कायं की आशा वर सकते हूँ 1 अर्थशास्त्र का नियम यह कहता है वि यदि इस प्रकार का कारण हू तो कायं का स्वरूप इस प्रकार का होगा। भ्रत्येक विज्ञान के नियम इसी अथ॑ में नियम होते है । यदि ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसो का मिश्रण परिया जवि मोर्‌ अन्य सव चीजें यथास्पिति रहें तो उस समय सिथण के फलस्वरूप बानी वन जावेगा । इती भकार अर्थयस्व मे मी अन्य वस्तुओं के ययाश्थिति होने पर ( 00107 ४४४18$ ०८०४ ८पु०थ ) यदि किसी वस्तु के दाम बढेंगे तो उसकी मांग कम हो जावेगी। इसल्पि यदि रसायनशास्त्र का कोई नियम एक प्राइतिक नियम माना जाता हैँ तो अरंशास्त्र का नियम भी उसी अर्थ में प्राकृतिक नियम है । परन्तु अपंझ्ञास्त्र बे नियम उतने निश्चित (८४४८) नहीं है, जितने कि प्राशृतिक विनानो गे नियम ॥ प्राइ्वतिक विज्ञानों के अध्ययन का आधार सगु मीर परमाणु है, जिनकी मात्रा निश्चित हूँ | परत्तु अर्थशास्त्री बे अध्ययन का आधार मनुष्य के बायं होते ह | किसी विश्वेष परिस्थिति गें या विशेष कारणवद् मनुष्यों वा एक समूह सदा एक सा कार्प नही करेगा; यह नहीं कहा जा सकता कि जब-जब यह वारण हो, तब-तब मनुष्य सदा यह काम वरंगे ॥ कुछ एसे नियम होते हूँ जो रवपसिद्ध होते है, हें सिंद बरने की आवश्यकता नही होती । जँसे कि खर्घ के वाद जो आमदनी बचेगी




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