देवकीनंदन खत्री समग्र | Devkinandan Khatri Samgra

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Devkinandan Khatri Samgra by डॉ युगेश्वर - Dr. Yugeshwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रचनाएं चंद्रकांता न कि चंद्रकांता मूलत: प्रेम कहानी है । जंगल और पहाड़ियों में वसा नौगढ़ (वाराणसी जि का एक तहसील है । कस्वा है ।) के राजा सुरेन्द्रसिंह के राजकुमार वीरेन्द्रसिंह और विजयगढ़ (मिर्जापुर जिला) के राजा जयसिंह की राजकुमारी चंट्रकांता में प्रेम हो गया । किन्तु विजयगढ़ के दीवान का लड़का थी क्रूरसिंह भी चंद्रकान्ता की ओर आकृष्ट था । क्र नामक यह व्यवित निम्न स्तर का है । यह प्रेम से नहीं , क्रूरता पूर्वक चंद्रकांता को प्राप्त करने की कोशिश करता है । किंतु उस शैतान की हर कौशिश विफल होती है । वह दो प्रेमियों के मिलन को रोक न सका । विघ्नों से चंद्रकांता और बीरेंद्रसिंह के प्रेम में किसी प्रकार की कमी नहीं आती है । क्रूर और उसके साथियों का अंत होता है । इसी क्रर के चहकावे में चुनार (मिर्जापुर) के राजा शिवदत्तसिंह भी चंद्रकांता को पाने की कोशिश करते हैं । किंतु उन्हें भी सफलता की कौन कहे राज्य से भी हाथ धोना पड़ता है । किन्तु राजा: सरेन्द्रसिंह की उदारता और क्षमादान की प्रवृत्ति से वे वच जाते हैं । फिर भी वे पड़यंत्र करने से नहीं चूकते । इसमें क्षमा और छल दोनों के महत्व की अभिव्यक्ति हुई है । _ व्वंद्रकांता के साथ चपला और चंपा दो और स्त्रियां हैं । ये दोनों ऐयारा हैं और क्रम शः तेजसिंह और देवीसिंह की प्रेमिकाएँ हैं । वीरेन्द्रसिंह के साथ जीतसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, बद्रीनाथ, जगन्नाथ ज्योतिषी आदि ऐयार हैं । ये ऐयार और ऐयारा ही पूरी कथा को विकसित करते हैं । तिलस्म में फँसना और गिरफ्तारी के कौतूहल युक्त भंय के संसार में पाठक उत्सुकता पूर्वक ऐयारों द्वारा मुक्ति का इन्तजार करता है । एक मुक्ति होती है तब तक दूसरे बंधन का दृश्य उपस्थित हो जाता है । इंस प्रकार पूरा उपन्यास बंधन और - मुक्ति, मुक्ति और वंधन के चक्कर में घूमता है । अंत में बीरेन्द्रसिंह तिलिस्म तोड़कर उसमें फँसी चंद्रकांता का उद्धार करते हैं । तिलिस्म तोड़ने से उन्हें प्रचुर संपत्ति भी मिलती .: है । वीरेन्द्रसिंह के साथ चंद्रकांता, तेजसिंह के साथ चपला और देवीसिंह के साथ चंपा का विवाह होता है । कथा का अंत सुखमय होता है । की 2 ः चंद्रकांता संतति यह उपन्यास चौबीस भागों में विभकत है। इसमें चंद्रकांता और बीरेन्द्रसिंह के दो पत्र कँअर इन्द्रजीतसिंह और कँअंर आनन्दसिंह की कहानी मुख्य है। इसके अतिरिक्त भी अनेक पिता, पत्र पुत्री का का हैं। एक साथ ही दो-दो, तीन-तीन पीढ़ियाँ कार्यरत हैं। उदाहरण राजा सुरेन्द्रसिंह, सह और इन्द्रजीतसिंह एवं आनन्दसिंह तीन पीढ़ियों को लिए लोग हैं। विना किसी रिटायरमेंट के पिता, पुत्र, पौत्र के अच्छे सम्बन्ध हैं। कि ._.. सतति का कथा क्षेत्र बनारस से विहार तक फैला है । अनेक राजे और राज धानियाँ है । पान्रों की भीड़ लगी है । हर पात्र घटना सम्बद्ध है । इसलिये घटनाओं में विवि धता, विशालता और फैलाव इतना अधिक है कि सामान्य आदमी भटक जाय । किन्तु लेखक कासंयोजन विचित्र हैं । वह हर घटना, पात्र और परिस्थिति का ऐसा संयोजन करता है कि कुछ छूट न जाय । कुछ अतिरिक्त और अस्वाभाविक न लगे । जितने पुरुष पात्र हैं लगभग उत्तनी ही स्त्रियाँ हैं । स्त्रियाँ सभी प्रकार की हैं । राजमहिषी से लेकर बाँदी तक । (शो)




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