श्री भगवती | Shri Bhagawati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
788
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विल्लान व्यों-ज्यो विकासकी और बढ़ रहा है तथा ज्यो-
न्यो अपने ज्ञानकें आयतकी परिधि भी घहा रहा हे त्योन्त्यो
नधमफे मान्य सिद्धान्तो ओर विपयोका भी प्रतिपादन हो रहा
₹। विज्ञान-स्वीकृत कुछु जन सिद्धान्त इसप्रकार ऐं --
(९) जगत का अनादि (२) वनम्पतिमे जोचत्वशक्ति
(३) जीचत्य शक्तिः रूपपः (४) प्र्मीकायमे जीवस शक्तिकी
संभावना (४) पुदगल ( 1५॥ल7 } तथा उसका अनादिसव
(९) जंन-दशन जगन, जीव, अजीव द्रव्योंकी अनादि सानता
है। आधुनिक विघ्लान जगती कव सृष्टि ह , उस चिप्यमे
अभी अनिश्चित है। पर प्रस्तुत विपय+ प्रसिद्ध प्राणीशास्त्रवेत्ता
श्री जे० ची० ग्स० टालठेन का वक्तव्य उद्धरित किया जा रहा
है, जिसमें थे कहते ह--भेरे विचारमें जगनकी कोई आदि
नहीं है
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