श्री भगवती | Shri Bhagawati

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Shri Bhagawati  by सौभाग्यमल जैन - Saubhagyamal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ५५ ै विल्लान व्यों-ज्यो विकासकी और बढ़ रहा है तथा ज्यो- न्यो अपने ज्ञानकें आयतकी परिधि भी घहा रहा हे त्योन्त्यो नधमफे मान्य सिद्धान्तो ओर विपयोका भी प्रतिपादन हो रहा ₹। विज्ञान-स्वीकृत कुछु जन सिद्धान्त इसप्रकार ऐं -- (९) जगत का अनादि (२) वनम्पतिमे जोचत्वशक्ति (३) जीचत्य शक्तिः रूपपः (४) प्र्मीकायमे जीवस शक्तिकी संभावना (४) पुदगल ( 1५॥ल7 } तथा उसका अनादिसव (९) जंन-दशन जगन, जीव, अजीव द्रव्योंकी अनादि सानता है। आधुनिक विघ्लान जगती कव सृष्टि ह , उस चिप्यमे अभी अनिश्चित है। पर प्रस्तुत विपय+ प्रसिद्ध प्राणीशास्त्रवेत्ता श्री जे० ची० ग्स० टालठेन का वक्तव्य उद्धरित किया जा रहा है, जिसमें थे कहते ह--भेरे विचारमें जगनकी कोई आदि नहीं है गगरा 07808085188 90) 00: 0010506 10-089, णापे 000৮৩018600 09: 0০:00 হ0211700 जश6क 16 *११98४% 400 1)00,. ০৮০7) 60 ৪0011086 010818208 ছ০:০ £98770. ॥0 ४९ 01001010011) তা 000919110800, ४16 97००1७७ ० ४0० 01010 0£ 1819 70800009 দ্য 156209» 8103৮ 01 610 ৪9009961028 8৪ 60 16৪ 01001008000 01881170098 10110%৪$ (1) 1516 1188 00 00010 01৮67000170 0৮5০ 152১৪ ५०८१8९0 ष (2) 1.1 ०प्एप४४९त ०१ एप काभ1९४ ए 90196700501] ৪৮০0৮ (3) 140 07712105650 15000 00108 01101001001 190061008 ५ ৪10 00106107085 ए700088 (4) 1110 07101018৮50 ०8 0159 708पॉँ६ 01 8 58: €01197079510]9 9৮০0৮ 1101 110০9: 0৩ 01008 ০০৮৮0, 60 1100001) 0৮60




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