काव्यशास्त्र | Kavy Shastra

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Kavy Shastra by कृष्णदत्त अवस्थी krishna dutt awasthiयतीन्द्रनाथ तिवारी - Yateendranath Tiwari

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यतीन्द्रनाथ तिवारी - Yateendranath Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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মিন 1 १३ दवार वरते है। यहों कारण है वि इने गन्धो मेग्म,घ्वनि, अक्कार, कैति, बक्ोक्ति जादि सभी को घोड़ा-घोड़ा स्थान प्राप्त हुआ । यट दूसरी बात $ कि वे रिसी को कम महत्व देते हैं ओर विसी तो अधिक, जिल्तु उनही यह समसपयवादिया रस्नही प्रौष ब्यापत्त एवं मौदिए दृष्टिशोगों को सूचक नहीं, अपितु सारसकउन की प्रवृत्ति की योग है। कुछ आचार्यों वो छोड़ कर ছা में जिवेचन की ग्म्भोरता, विश्देषण की सूद्मता एवं निष्वर्पो बी मौलियता वा प्राय अभाव है । इस दृष्टि से यह युग मारतीय साहित्य-शास्त्र वी जरा-भयस्था बा सूचत्र है । ड. पद्यानुवाद-काल (१७ यों से १९ वो शती तक) इस वाल मे सस्कृत का स्थान आयुनिक भाषाओं ने के लिया था, प्रा भआरतीय साहित्य-शास्त्र अनेक प्रदेशित-्भापाओं मे विभक्त हो गया था । इस युग में हिन्दी मे केशव, सित्वामणि कुलपति, सोमनाथ आदि ने पद्मवद्ध रीति- प्रभ्य छिसे | एताधिक कवि तो अवतरित हुए, परस्तु शास्त्री 4-विवेचन-फार्य इस बवियों के वश में नही था । यही वारण है कि डा० भगीरथ मिथ ने लिखा “हिन्दी के अधिकाश छेखको (कवियों) वा रक्षण भाग अस्पप्ट अथवा अपूर्ण है बे आचायंत्व के अयोग्य है, वे कवि ही प्रधान है, उनका आचापँत्व था शास्त्रीय-विवेचन का प्रयत्त बहुत सफल नहीं।” अन चिन्तामणि आदि आचारयों ने भारतीय काव्य-शञास्त्र के विक्रामस में कोई योगदान नहीं दिया। हिन्दी के वर्तेमान काव्य-शास्त्रीय सिद्धान्तों के निर्माण में भी इनका योगदान नही है । ‰- नवोत्याने काल (१९ वीं शती फ अन्तिम से अव तक) इस काल को भी हम मुख्यत तीन युगो में विभक्त कर सकते हैं-- १ भारतेम्दु द्विदेदी-युग--१८५७ ई० से १९२५ ई० तक २. रामचन्द्रशुकल युग--१९२६ ई० से १९४० ई० तक ३ शुदलोत्तरपुग--१९४१ ई० से अब तक | प्रयम युग मे भारनेम्दु हग्दिचिन्द्र, महावोरप्रसाद द्विवेदी, मिश्र वन्द्‌, द्याम सुन्दरदास, आदि विद्वान थे, जिन्होंने अपने कुछ लेखों एवं पुस्तकों में साहित्य-




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