साहित्य - चिंता | Sahitya Chinta
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क
आलोचना का अधिकार--१
काब्य-्साहित्य के सम्बन्ध में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह सुशिक्षित हो
या अद शिक्षित, श्रप्ने को श्रालोचना करने का अधिकारी सममता है | यह
कुछ श्रद्भुत है, पर श्र॒रवाभाविक नहीं | वात यह है कि साहित्य एक
सावेजनिक अथवा जनतन्त्रात्मक कला है, छेर्ग]तत श्रौर चित्रकला की মালি
कुछ खास लोगों की चीज़ नही। उसका रस लेने की किंचित् छमता प्रायः
समी वर्तमान रती है। फिन््द् पिर भी लोग जिस तेजी से साहिस्यिक
कृतियों का मूल्य[स्न करमे अथवा उन पर निर्णयात्मक सम्मति प्रकट करने
को दीद पढ़ते हैं, उसे देखकर श्राश्चय॑ शी होता है ।
बस्व॒तः आलोचना एक शास्त्र है श्रौर किसी मी शास्त्र को आत्मसात्
करने में दुछ रुमय लगता हे। सादित्य का रख लेने की क्षमता एक মাল
है और उसकी श्रालोचना करने की योग्यता उर्वथा दूसरी | इस तष्य को प्रायः
अधीद लोग भी भूल जाते हैं। साहित्य का ग्खास्वादन अपेद्दाकृत एक मूक
एवं निष्किय व्यापार है, जब कि श्रालोचमा मुखर और सक्रिय होती है । पहली
क्रिया संश्लेपण या समन्वयात्मऊ है, दूसरी विश्लेषणात्मक; पहली ग्रहणात्मक
ह, दूय पदान या व्यं जनात्मक । श्रालोचना में श्रषनी मावनाश्रौ या विचारों
को दूसरों की चेतना में संक्रान्त करना पड़ता है। इसका यह श्रय॑ नहों कि
साहित्य का अध्ययन करते समय मारी इति श्र-जागरकं या श्र-दौद्धिक
होती है; किन्द उस काल हमारी राग-बोधास्मक बू का विषय कुछ दूसरा
होता है ! उस समय इस मुख्यतः काब्यानुभूति को उसकी समग्रता में पाने
को उस्मुर होते हैं | काव्याप्ययन के लणों में एह्ममाण अनुभूति के सामंतस्य-
श्रसामंमस्य झ्रादि की चेतना रइ सकती टै; पर उनके दध्नो टौ नहो | इसके
विपरीत श्रालोचना को विष्य शत श्रनुभूति के विशेष प्रद्र की इने के
इन हेतुओं का निर्देश है । ध
तो, सफल श्रालोचङ बनने के लिए. उस प्रकार ढी येप्यताः दा येत्य
ताओं का सम्पादन अपेद्धित है! प्रस्दिद जीवनी लेखछ लिटन स्ट्रैसी मे
इतिहासकार के आवश्यक गुरों के सम्बन्ध में लिखा है ड्नि इतिदासक़ार में
User Reviews
No Reviews | Add Yours...