उपोद्घात | Upodghaat

Upodghaat by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषबदेद मे शरगीत मी छिले हेँ। हर बरपीत के श्न्त में उनका माम मस्त है जैसा कि ऐसे मजनों में हमेघा हुआ करता है । नामबोपार्मे एका नाम जार दम बाषठा है 1 प्र्प-समाष्ठि मे एक दपर ता नपेकितही है, पर और ठीन दफा क्‍यों खाया होगा ? लामघोषा को तीन विभार्यों में मैने बिमाजित किया उसको मांप्तीर्षाद के दौर पर मद पूर्ष-मोगसा की जयी पसा मैने मान लिया । अध्यायों और अप्डों के माम जो असमिया में दे स्पप्ट ही है। कुछ माम सक्तृत में दिय है, लो पुराने प्रथों से किये गये है। पुछ सांकेतिक है जिनका अर्थं समह केने के छि चिन्तन षौ जरूरत रहेगी। उदाहरणार्ष “रत्मभ्रग' (अध्याय-२४) । बौद्ध जैन जादियों ने अपने-अपने ईप से 'रत्न- अप की कश्पना की है। चैनो में “रत्तभ्पणघारी' एसा बच्ष्चों का शाम मी रखते है। सामषोपा में रत्तभय' एक विपिप्ट बैप्णय-सकेत है । (१) र्वष गुणदर्सन (लष्ड-१५९) (२) पुख्पार्ष प्रेरणा (रूप्ट-१६ ) और (३) विधि-मुक्ति (लष्ड-१६१) ये सक्तिमार्भीय रप््तय है) दूसरा एडाइरण 'विष्तभन' (खूष्ड-१४९) । कम्तरताद-यबय (बोपा-३१८ ) में तीष भिष्न अते है--भिभिप पुष्पाभ (बोपा-१८१) बिपय-आासता (बौपा-१८२) भ्व्प-चिचार (भोपा-१८३) । इस तरदइ चहँ सकिधिक लाम इगि बड पाटो को चित्ठन्‌ से उनका लखापा कर लेना चादि इसमें छिय हुए पाठ अक्सर सी नेजोग की आवृत्ति में से है। अन्प प्रकापतों में से जौ गुछ डिये हे । एक चबड मैने अपती ओर से मूल संस्कृत पद्चाशुषार, पाठ-संपोगन किया है (बोपा-॥४ ) ¦ अष्यायों में 'गौता-तिर्भद/ मामक १८शा जप्याय पाटे का ध्यान छौचेया। इपमें से सनेक पद्य शामजोपा में एक स्थान मं है जौर ছু অন্য षु




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