भारत का धार्मिक इतिहास | Bharat Ka Dharmik Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ऋ ) कहाँ तक सफल हो सके हैं, यह हम नहीं कह सकते, क्पोकिः वास्तवमें विषय बड़ा ही विचाद्‌-श्रस्त है । विषय यहाँतक विवाद ग्रस्त है, कि खास खास प्रधान देवताओं तथा धार्शिक कथाओंके निर्माणपपर भी जब ध्यान जाता है, तब मनमें एक प्रकारका संशय सा उत्पन्न हो ज्ञाता है। हिन्दू धर्मकी प्रथम अवस्थामें जिस तरह वेदिक শ্রম আহ वैदिक व्यवहारका प्रचार था, उसी तरह पुण्य काट अथवा पौराणिक धर्म ओर व्यवहारमें भी उसका सूत्रपात दिलाई देता है। पहले गायत्री, सविता अर्थात सूर्य देवकी स्तुतिमें सन्निवेशित थी ; इसके बाद उसने ब्रह्मगायत्रीका रूप धारण किया ।# पुराणके मतसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन देवताओमें शिव ओर विष्णु ही प्रधान हैं। यहांतक कि उन्हें प्रकृत परमेश्वर ही माना है, पर प्रामाणिक उपनिषद्‌ ओर मनुसंहिता पर्तिमं तरिम्‌ त्तिमें ब्रह्माका ही प्राधान्य दिशा दैतादै। ब्रह्मा देवानां प्रथमः सम्बभूव विश्वस्य कत्ता भुवनस्य गोप्ता। .. स ब्रह्मविद्यां सव विाप्रतिष्ठा अथव्वांय ज्यष् पुत्राय प्राह ॥ मगड्कोपनिषद्‌ ।१।१। देवताओंमें आगे ब्रह्मा उत्पन्न हुण। वे जगतके कर्ता पालन करनेवाले हैं। उन्होंने अथव्बे नामक ज्येष्ठ पुत्रको सब विद्याओंका आश्रय-स्वरूप ब्रह्म-विद्या बताई थी । तस्मिन्‍नण्डसे भगवानुषित्वा परिवत्सरम्‌। स्वयमेवात्मनो ध्यानात्तदण्डमकरो द्विधा ॥ _ मनुसंहिता ।१।१२। # ऋग्वेद संद्विता । ३े म० ईर खू० १० ऋ० २




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