श्री धर्म्मकल्पद्रुम भाग ७ | Sri Dharmma Kalpadruma (vol. Vii)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चतुदंशलोक समीक्षा । २१६५
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चतुर् शलोकमय ब्रह्माएडशरीर तथा पिएडशपीर दोनों ही में व्याप्त रहते हैं ।
यथा श्रोशम्भु गीतामे :--
संस्थापयितुमहंन्ति खाधिपव्यं खधाभुजः ।
देवासुरगणाः सर्व जीवपिण्डेष्वनुक्षणम् ॥
चतुदंशज्ञोकव्यापी देवदा तथा अखुरनण सदा हा जीवशरीरमें अपने
प्रभावको जमा सकते हैं। देवता और সৎ नाना श्रेणिके होते है। उनके
निवाखस्थानके विषयमे शम्घुगीतामे ज्िखा है :-
वसन्ति देवाः पितरः ! उरदृध्वलोकेषु सप्तसु ।
सन्ति्ठन्तेऽसुराः सवे ह्यधोलोकेषु सप्तसु ॥
तमोमुख्यतया सृषटेरसुराणं हि सप्तमे ।
लोकेऽस्ययुरराग्यस्य राजधानील्धस्तने ॥
देव्याः सच्पृधानत्वात् स्ट राजाजुशासनम्।
उच्चै दैवेपु लोकेपु नेवावश्यकमस्त्यहो ॥
अस्वयतो देवराजस्य राजधानी ठृतीयके ।
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ऊर्दध्वलोके स्थिता नित्यं नात्र कायो विचारणा ॥
विशेपतोऽयुराः स्वे सदा प्राच्रल्यसन्ज्ुपः ।
कुबाणा নিত্তর্ন ইন হাত सृष्टः पृवाधितुम् ॥
सामरस्यं विचेष्टन्ते नितान्तं सन्ततं वहु ।
अतोऽपि देवराजस्य राजधानी दृतीयके ॥ ,
জল सप्त रोकोमें देवतामका निवास दै शरीर श्रधः सक्च लोकौमें
अखुरौका निवास है। अखुरगशकी रूप्टि तमःप्रधान होनेसे अखुरराजकी
राज्ञधानी खत्म श्रधोलोक श्र्थात् पाताले स्थितदै। परन्तु दैवी ख्ष्टि
सस्वप्रधान होनेके कारण और उन्नत दैवलोकौमं राजाचुशासनकी श्रावश्यकरतां
न रहनेसे देवराजकी रांजधांनी तृतीय ऊर्दृध्चलोक श्र्यात् स्व्गलोकमं स्थित
है। विशेषतः अखुरगण खंदा प्रवलता लाभ करके दैवराज्यमे विक्षव कर्ते
हप खषिखामज्ञस्यम वाधा डालनेमे सचे रदते दै, इस कारणसे भी देवराजकी
राजधानी सदा तृतीय ऊर्दृध्वलोकमें स्थित रहती है। देवता और अखरोकी
प्रकृतिमं यह भी एक- विशेष - अन्तर है कि, देवतागण अपनी राज्यसीमाकोा
अतिक्रम करके अखुरोके-रज्यपर कभी आक्रमण नहीं करते' हैं, क्योंकि न्याय.
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