राष्ट्रनिर्माता मुसोलिनी | Rashatra Niramaata Musholini(1936)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४9 किन्तु वह अपने भाग्य अथवा अपने देशवासियों के भाग्य से बराबर बचते ही गए । हम ऐबीसीनिया और स्पेन के निहत्थों पर बम वषों की जाने की निन्‍्दा करते है, किन्तु अन्य देशों में उसी से मिलते जुलते दृश्य को शांति से देख लेते हैं । हम इस बात को एक दम भूल जाते हैं. कि कौरव पांडबों के जेसा धर्म- युद्ध केवल भारत भूमि में भारतवासियों के द्वारा ही संभव हे; यूरोपवासियों के द्वारा तो वह एकदम असम्भव है। पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिये कि क्र.रता के विषय मे हिटलर, मुसोलिनी अथवा स्टालिन समी भाई २ हैं, उनमें कम कोई नहीं है | उन सभी के क्रोध से बचते रहने में ही कुशल है । अस्तु, इस प्रकार समाजवाद ओर फासिस्टवाद्‌ के अन्दर पक्षपात रहित होकर हमको यह सोचना चाहिये कि हमको अपनी भावी शासनपद्धति सें किसको अपनाना हे । मेरी तुच्छ सम्मति में भारत-वसुन्धरा समाजवाद के लिए उप- युक्त स्थान नहीं है । साम्यवाद्‌ श्रथवा समाजवाद श्रभी श्रभ्यास- कोटि में हैं । स्वयं रूस में ही उसके रूप के पश्चात्‌ रूप बदलते रहे हैं । फिर भला धर्मप्रधान भारत देश में यह बगेयुद्ध बाला आंदोलन किस प्रकार शांति स्थापित कर सकता है । इसमें सन्देह नहीं कि फासिस्टवाद में भी डिक्टेटरशाही ओर सैनिकवाद यह दो तत्त्व अग्राह्म हैं। यदि फासिस्टवाद में से इन दोनों तर्तों को प्रथक्‌ कर दिया जाबे तो शेष विशुद्ध राष्ट्रीय समाजवाद ( '९५६०००७। 502ा8)1810 ) बब रहता है ।




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