पुरुषार्थसिध्दयुपाय | Pursarthasidhyupayh

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Book Image : पुरुषार्थसिध्दयुपाय   - Pursarthasidhyupayh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १३] অখ-_লা कोई की वापकी हरे मांसकौ द्लीको खाता है वा छता है बह बहुत जाति के जीव समूह के पिंड को इनता है-- मधु मधुशकल्मपिप्रायो मधुकर हिंसात्मक॑ मवतिलोके | मनतिमधुमढधीकोयःसमवतिहिसकोऽत्यन्तम्‌ ।६९॥ अर्थ- छक में शहद का कण भी मक्ख़ियों की हिंसा से ही उत्पन्न . होता है इस कारण जो सूख शहद को खाता है वह बड़ा ही हिंसक है- स्वयमेवाविगलितंयो गृद्दीयाद्वाछढेन मघुगोलात्‌ | तत्रापिमवतिरदिसता तदाश्रयप्राणिनाङ्घातात्‌ ॥७०॥ अथे--और जो शहद की बूँद झहद के छत्ते में से घोके से ली जावे या स्वयमेव नीचे गिरी हई छी जा तो भी उस ईद्‌ के आश्रित जीवों कं धात होने से हिंसा होती है-- मक्खन मधुमद्यनवनीतं पिशित च महाविक्रवयस्ताः । वर्म्यन्ते न मतिना तद्रणांनन्तवस्तन् ॥७१॥ अथे -- शहद, शराब, नवनी घी अर्थात्‌ मक्खन और मांस ये महा विकारों को धारण किये हुए चारों पदार्थ ब्रतीपुरुषों को नहीं खाने चाहिये इनमें उसही रंग के जीव होते हैं-- पाच उदम्बर शक योनिरुदुम्बरयुगमं ष्ठक्षन्यग्रोधपिष्पलफटानि । ` त्रसजीवानांतस्मात्‌ तेषान्तद्धक्षणे हिंसा ॥७२॥ अथे--ऊपर, कट्पर यह दो उदम्बर और पिलखण, वड और पीपल का फल तरस जीवों की खान है इस हेतु इनके खाने में उन त्रस जीवों की हिंसा होती है-- ` यानितुपुनभवेयुः कारोच्छिन्नत्रसाणिशुष्काणि । मजनतस्तान्यपिरहिपा विरिष्टरागादिरूपास्यात्‌ । ६॥ अथे - और जो यह पांचों उदम्बरफल सूख कर कार पाकर तरस जीवों से रहित भी हो जानें तो भी उनके खान से अधिक रागादिरूप हिंसा होती हे भावार्थ--स्ुख उदम्बर फर्म को तमी को खायगा जब उन फछों में अधिक रागभाव होगा और रागभाव उत्पन्न होना हिंसा हे क्योंकि रागभाव से आत्मिक भ्रुद्धभाव का घात होता है--




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