मुनिसम्मेलन | Munisammelan

Munisammelan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रण वल्लभविजयजीने मुनिर्मडलके ध्यानकों आकार्ष्त कर कहा कि, शाख्राज्ञाचुसार साधुको दोसे कम, और साध्वीयोंको तीनसे कम नहीं रहना चाहिये. जहां कहीं इस शाख्राज्ञासे विपरीत हो रहा है, वहां स्वछ॑ंदता आदि अनेक दोषोंका समावेश हुआ नजर आ रहा है ! अतः इस बवातमें श्रावक छोकॉंकाभी कच्तेव्य समझा जाता है कि, जव कभी किसी अकेले साधुकों देखें तो शीघ्रही उसके गुरु आदिको खबर कर दे देवें ता कि, एकल विहारियोंको कुछ ख्याल होवे. परंतु, श्रावकोंको उपाश्रयका दरवाजा खुढा रखना, और सो डेब्सी रुपये की, पयुषणाके दिनोंमें पैदायश करनी; इस . बातकाही ख्याल नहीं रखना चाहिये ! प्रस्ताव चौथा. (४) कोई साधु, जिसके पास आप रहता हो उससे नाराज होकर चाहे जिस किसी अपने दूसरे साधुके साथमें जा पिले तो, उसको बिना आचाये महाराजकी आज्ञाके अपने साथ हरगिज न मिलावे, यह नियम मुनिश्री विमलविजयजीने पेश कियाथा जि- सको मुनिश्नी जिनविजयजीने पुष्टि करते हुए कहा फके; पूज्य मुनिवरों ! मुनिश्री विमलविजयजी महाराजने जो प्रस्ताव पेश किया है, इसपर मुनि सम्पेलनको विचार




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