मेरा जीवन प्रवाह | Mera Jeewan Pravah
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
429
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरी जन्म-पूमि ७.
हैं। विर्ध्यभूमि की लावण्यमयी वनभो देखते ही बनती हे । छोरी.
छीटी हरी-भरी पद्दाडियाँ, काछ्ी चट्टानों के साथ खेचती हं चंचल
फेविज्ञ नदियाँ, कई दँचे-ऊँचे प्रयात और सुन्दर मरने, सेकड़ों स्वच्छ
घरोवर और सघन वन-समूद्द किस प्रकृति-प्रेमी को भुग्ध न कर केंगे।
सबधुच बेतवा और केन के धंचज्नों पर के मनोरम दृश्यों को एक बार
जिसने देख लिया, वह कभी उन्हें भूल्नने का नहीं। क्व्रिकूट का प्राकृत
चित्राक्षणे भल्ला कौन चित्त से उतारना चादेगा ? खजुरादे के कल्ा-पूर्णा
मन्दिरों पर कौन यात्री मोद्तित न हो जायेगा ? चन्देक् ों के समय फी
घास्तुकज्ञा के ये अद्भुत नमूने दें | देवगढ़ की मूत्ति-निर्माण कल्ना भी
आश्चयेकारक है ।
भारत के इस भब्य भू-भारा पर बहुत कस, बक्कि तगणय-सा शप्थ-
कार्य हुआ है , विम्ध्य भूमि की न जाने कितनी श्रद्भुत शिक्षाएँ
अन्व कार में जहाँ-तदाँ दबो पढ़ी हैं। उनकी भात्च-लिपि कौन तो पढे,
आर कौन उनका रद्दस्प्रपूर्ण श्र्थ क्षगाने का कष्ट उठाये ! इस विराट्
कार्य के लिए एक नहीं, अ्रनेक वुन्दावत्तलाल वर्मा चाहिए । मेरे मित्र
पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी की प्रेरणा से निरसंदेह कुछ सांस्कृतिक
चर्सा का सूत्रपात हुआ, पर बह सुद्र में बूँद के समान रहा ।
प्रकाश में आये «| न भ्राये, यद् सब अतोत की संपदा है । किन्तु
इस प्रदेश का वर्तमान भो अब कुछ-कुछ प्रकाश में आर चलना है ।
कल्लतक तो प्रायः सभो दृश्यों ते यह प्रदेश भारत का एक घोर
झँधेरा कोना था। पहले तो इन्दोर, भुपाक्ष, रतल्लाम, काबुआा आदि
पाँच-सात राज्य दी अख़बार पदनेवक्ों की दृष्टि में मध्यभारत के
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