अहिंसा-प्रवर्तक सर्वज्ञ भगवान महावीर | Ahinsa Pravartak Sarvagya Bhagwan Mahavir

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ বর ই) হন महापुर्षाके परित्र-त्वी हमचद्र सूरिहृति আত शालावा थपुर॒प चरित्र * में हैं। भगवान महावीर जिस सर्षिणी काल में उत्पस हुए हैं वह अवसपिणी वाल बहा जाता है । इस अवस्दिणों बाल में प्रथम तीथकर भगवान व्रपम दव जी हृएु । उनवरे वाद २३ तीर और हुए है जिनवे नाम प्रमश इस प्रकार ई (२) भजीतनायजी (३) श्रौ मभवनाथजो (४) श्री मभिनन्दनजौ (५) श्री सुमति- नाजी (६) पप्मप्रभूगी (७) थ्री सुपाशवनायजी (८)शी चद्र- प्रभूजी (६) श्री सुविधिनाथजी (१०) थी शीतलनायजी (११) ध्री श्रेया-सनापनी (१२) श्री वामुपूज्यजी (१३) धी विमत नाथसजी (१४) धी अग तनायजौ (१५) श्री धमनायजी (१६) श्री शान्तिपायजी (१७) थी कुशुवाथजी (१८) श्री अमरनायजी (१६) थी मत्विनाथजी (२०) श्री मुनिसुश्रतनाथंजी (२१) श्री ममिनापनी (२२) श्री नेमितायजी (२३) थ्री पाश्वतापजी और (२४) श्री महाबीर स्वामी ॥ इस प्रवार तीर्ययरों की क्रमावली पूण होते हुए पाल निर्माण वा इतना समय बीत चुका है कि जिसकी ঘগবা সত तीषेकर वी आयुष्य और उनके मध्यकालीय पर्षों वी ग्रिमतो लगाने से ही प्रतीत हो सरती है। ये गणना जैन शास्त्रा में इतनी बताई गई है शि जिसे सख्यामें ता लिख सकते हैं परन्तु उस सख्या वो पढ़ नहों सबते। इसका वारण यह है कि आधुनिय समय में उतनी सख्या पढने ये लिये शब्द ही निर्माण मरी हृषु + शीते जन धर्म की प्राचीतता वा पता चलता ই ফি यह विति पुराना सनातन প্রন ই।




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