मुझे मोक्ष नही चाहिए | Mujhe Moksha Nahin Chahiye

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Mujhe Moksha Nahin Chahiye by रणजीत सिंह कूमट - Ranjeet Singh Kumat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दुख दूर हुआ ?ै गरीब अपनो गरीवों में पिस रहा है और मैं उसको और से आांखें मू द कर ज्ञान को प्राप्ति में लगा हूं । पर क्या मैं निविकल्प समाधि की भ्रवस्था प्राप्त कर सकता हूं ? यदि यह माना जाता है कि समाधि को दशा में श्रात्मानुभूति व्यापक हो जातो है, तो प्रत्येक प्राणो को श्नुभुति हमारी श्रात्मा में प्रतिलक्षित होनी चाहिए। जब तक कोई प्राणों दुःखी है और उसका दुःख मेरी श्रात्मा में प्रतिलक्षित होता है तो मैं कैसे समाधि प्राप्त कर सकता यदि मैं झनुभूति को सकुचित कर लूं , सिर्फ अपने सुख-दुःख को ही सोचू तो वह पूर्ण अनुभूति नहीं कहला सकती । स्वामी विवेकानन्द को उन के गुरु ने यह ज्ञान दिया था कि निर्विकल्प समाधि के चक्कर में मत पड़ना, तुम्हें उससे भी बढ़ कर कार्य करना हैं । भक्ति का उपयोग यया है ? एक जग्रह विवेकानन्द ने कहा हू, “मैं उस भगवान या धर्म में विश्वास नही करता जी विधवाओं के श्रांस्‌ पोंछ नही सकता हो भौर अनाथों के मु ह में रोटी का टुकड़ा नहीं पहुंचा सकता हो ।”' “कर्म, कम, कर्म, श्रादर्ण जोवनयापन करो। सिद्धातों श्रौर मतों का क्‍या मूल्य है ? दर्शन, योग, तपस्या, पूजागृह, श्रक्षत, चावल या शाकः का भोग--ये सब व्यक्तिगत श्रथवा देशगत धर्म है। किन्तु दूसरों की भलाई श्रौर सेवा करना एक महान सार्वली किक धर्म है। श्रावालवृद्ध- बनिता, चांडाल यहां तक कि पशु भी इस धर्म को ग्रहण कर सकते है । क्‍या मात्र किसी नियेधात्मक धर्म से काम चल सकता है ? पत्थर कभी अनैतिक कर्म नहीं करता, गाय कभी भूठ नही बोलती, वृक्ष कभी चोरी- डर्कती नही करते, परन्तु इससे क्या होता है ? माना कि तुम चोरी महीं करते, भूठ नहीं बोलते, न अनेतिक जीवन व्यतोंत करते हो, बल्कि चार घंटे प्रतिदिन ध्यान करते हो और उससे दो गुना समय भक्तिपूर्वक घंटी बजाते हो; परन्तु अन्त में इनका क्या उपयोग ?7 “काम के बिना केवल व्याख्यान क्या कर सकता ই ?% मुझे मोक्ष नही चाहिए : 3




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