मीमांसा और पुनर्मुल्यांकन | Mimansa Aur Purmulyankan

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Mimansa Aur Purmulyankan by विश्वंभर नाथ उपाध्याय - Vishvambhar Nath Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 साहित्य का समाजशस्सत्रीय श्रध्पयनं ? पूजीवादी जनतंत्रों के प्रतिष्ठित समाजों के भीतर सुधार भौर सामंजस्य (एडजस्टमेंट) तक अपने' को सीमित रखते हैं भ्रौर माकसंवादी समाजशास्त्र को, विशुद्ध वैज्ञानिक न मानकर, उसे नियमनवादी (07781) मानते है परन्तु माक्सवादियों के मध्य साहित्य और कला की सापेक्ष स्वायत्तता मान्य होने पर भी मानवीपता कै श्राधार पर, शोपित वर्गों की मुक्ति के लिए सृजन को “जनात्मा का प्रभियन्‍्ता'” माना जाता है प्रथत्‌ साहित्य और कला, मानवीय मुक्ति की बुनौती को स्वीकार कर शोपित वर्ग-पक्षध्ररता अपना कर बदलाव की गति को तीव्र करें श्रौर बर्ग चेतना का प्रसारण, सघनीकरग या श्रान्तरिकीकरण करे । “सहित्य के समाजशास्प्र” में यह इन्द्र बिल्कुल स्पष्ट है। दोनों शिविर मानते हैँ कि साहित्य का अस्तित्व, सामाजिक अस्तित्व का अ्रश है। कमंलोक प्रेक्सिस) श्र भावलोक परस्पर झ्ाश्वित या सम्बन्धित हैं । कीकेंगार्ड की तरह, सामुदायिक भावना को मिथ्या न मानकर दोनो शिविर सत्य मानते हैँ पर साहित्य को एक विधघार व्यवस्था स्‍श्रौर सामाजिक संस्था के रूप में माक्संवाद ने ही देखा । लुकाच श्रौर लूसिए' गोल्डमन ने, साहित्य के समाजशास्त्रीय भ्रध्ययन को सुनिश्चित प्रविधि विकसित की । इसके विपरीत नार्थोपफ्राथ, सामाजिक नियमन बाद का विरोधी है । लुकाच ने दुर्ज्वा देशों के उपन्यासो में यह देखा कि आधुनिक लेखक 'पंतित' (06;०४०४७४७) नायक द्वारा पूजीवादी व्यवस्था और सभ्यता के हास या पतन को दिखाते है। समाजवादी-साम्यवादी विचारधारा के विकल्प को न मानने से बूर्ज्जा लेखक मात्र प्रालोचनात्मक यथार्थवादी होकर रह जाते है क्योंकि वे जनमुक्ति का विकल्प पेश नहीं कर पाते | इसी चिन्तन पद्धति पर चलकर लूत्षिएं गोल्डमन ने, उत्पत्तिमुलक संरचनावाद! प्रस्तुत किया जो साहित्य की विवेचना का एक स्पष्ट झादर्श (मांडल) सामने लाता है । संरचनावाद पश्चिमी देशों मे एक मान्य पदति है वह्‌ भाषाशास्त्र से समाजशास्त्र तक सत्र फंली हुई है | किन्तु पश्चिमी संरचनावाद झौर माव्सवादी संरचनावाद मे भ्रन्तर यह है कि माक्संवाद से प्रभावित संरचनावादी इतिहासवादी इष्टि का, (संरचनाप्रों की पहचान और विवेचना मे) प्रयोग करते है जवकि पश्चिम के ग्रेरमावर्सीय सम/जशास्त्री ऐतिहासिक परिप्रेक्य से तटस्थ रह कर या तो प्राकृ- বিক্চ নিজানী (9০510151505) কী অহ तथ्यवादी है या व्यवहारवादी । “उत्पत्तिमुलक संरचनावाद” को पूर्ण विज्ञान का दर्जा देने के लिए लूसिए गोल्डमन ने कहा है कि विश्लेपक किसी पूर्व कल्पना को उसी तरह मानता है, जिस 15119609100 $070৩65121501--9595891085 91111578075 800 तबतव--+ 16105 09 51759500 8320 [০] 1052




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