खली कुर्सी की आत्मा | Khali Kursi Ki Aatma

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Khali Kursi Ki Aatma by लक्ष्मीलाल वर्मा - Lakshmilal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সঙ্গ १७ लकडियों का फर्नीचर मार्ट बनवाया । इस स्थिति में मैंने उस कुर्सी में शरण ली जो तत्काल ही किसी फौज श्राफिस में जाने वाली थी । फिर उस फौजी जिन्दगी से, हवलदार को वर्दी-पेटी से लेकर ज्योतिषी, शायर, कवि, डाक्टर जाने किस- किस के यहां भटकता रहा ।' खटमल खामोश हो गया । कुछ देर सोचने के बाद बोला--लेकित थार इसके माने तुमने काफो लम्वी-चौड़ी जिन्दगी देखी हैँ । बडे उत्तार-चढ़ाव देख हिः नही जी....जव म शायर क यहाँ पहना तमी से मुभे किंतावो का चस्का सग गयां । रहता था कुर्सी मे लेकिन मेरी आत्मा को, मेरे शरीर को सुख मिलता था शायर कै पुराने खस्ता दीवाना में । आशिक के कलेजे, गुर्दे, जिगर, दिल, खून ““चवैया-क्या नही था उनमें । और जब मैं उसके यहाँ से दार्शनिक के यहाँ झाया तो फिर क्या कहना....वहाँ तो कुछ दिनों वढ़े-बडे शिकार भिले....लेकिन तव तक मैंने कुर्सी में रहना छोड़ दिया था....कभी নান के कैपिटल में रहता, कभी काट में, कभी किसी कविता की पुस्तक में जाता, कभी किसी शास्त्र के पन्नीं में उलका रहता, शौर तब धीरे-घीरे मैं उन सब की भात्माओं का रस लेने लगा, उनको चाट-चाट कर स्वस्थ होने की कल्पना करने लगा, जिन्होंने म्रादमी का दिमाग सातवें झास्मान पर चढ़ा दिया ঘা গীত সাজ বল हमे-वम्दे इन्दे-उन्दे मौर स्वयम्‌ भपनी हौ जाति कै लोगं को विभिन्न वर्गो भ्रीर सीमाश्रो में बॉटकर देख रहा है ।' ध दोनों थोड़ी देर तक मौन होकर उसी मेरे हाथ पर अपने पंजे सिकोटे बैठे रहे, निस्तब्ध, मौन, किसी चिन्ता में डूबे से । लेकिन इसी वीच एक भ्जीब शोर ঘা । स्टेशन पर साइरेन की धावाज गूंज उठो । इतनी तेज भ्रावाज कि काने के परदे फटने लगे । स्टेशन के प्लेटफार्म पर चहल-पहल मचने लगी । भन्धेरी रात भे चारो भोर सिगनेल लैण्टर्न ले-लेकर रेलवे कर्मचारी दोड-धृप करने लगे । भौर भन्त में पता: यह चला कि चन्दनपुर स्टेशन पर दो ग्राड़ियाँ एक दूसरे से टकरा गई हैं भौर काफी भादमी घायल होकर मर गये हैँ। कोई कह रहा था लाइन धेस गर्द है .. कोई कह रहा था पुलिया टूट गई हैं....कोई कुछ कह रहा था भौर कोई कर । लेकिन मेरे हाथ पर बडे हुए ये दो प्राणी केवल सुतर रहे थे मौर जद सुन चुके तो एक ने कहा--'भब तुम यहाँ प्न कैसे जामोगे....यादी वो भागे जाने से रही....भोर भगर यहाँ रहोगे तो इस खुले मैदान में, सरसब्ज जमीन में पुम बीमार पढ़े जाप्रोगे....भोर भगर यहाँ भस्वस्थ हो जाभोये तो तुम्हारे कई मवसद कई प्ररमान रह जायेंगे'.... “ठीक है जी, मैंने सद कितावों का स्वाद लिया या केवल श्टरो मिवा




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