सच्चे सुख का मार्ग | Sacche Sukh Ka Marg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
370
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७,
सकते । इसलिये यदि हमको मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करता है तो हमे बुरे
कर्मों के साथ-साथ अच्छे कर्मों को भी छोडना होगा । इसी प्रकार की
साधना करते रहने से ही एक समय ऐसा भायेगा जब हमारे सब प्रकार के
कर्म नष्ट हो जायेंगे, और तभी हम मोक्ष प्राप्त कर सकेगे। एकबार मोक्ष
प्राप्त कर लेने पर हम सर्देव-सद्दंव के लिये मोक्ष में ही रहेगे। फिर हमको
नये-नये शरीर धारण करने (जन्म मरण करने) तथा सुख दुखमोगनेके
चक्कर मे पडना नही पडेगा ।
उन विचारकों ने दूसरी व तीसरी श्रेणी के विचारकों की मान्यता
के विरुद्ध किसी भी तथाकथित स्वंशक्तिमान तथा शस विर्व के कर्ता, हर्ता
वे पालन कर्ता परमेश्वर का अस्तित्व मानने से इकार कर् दिया । उन्होनि
कहा कि यह् विश्व अनादिकाल से (सदव से) ऐसे ही चलता आया है और
अनन्त काल तक (सदेव तक) पेसे ही चलता रहेगा । न तो किसी तथा-
कथित सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने किसी विशेष समय में इस विश्व का
निर्माण ही किय/ः था और न वह परमेदवर कभी इस विश्व का विनाश ही
करेगा । हा प्राकृतिक कारणो, जसे--भूकम्प, बाढ, भूस्खलन, जलवायु-
परिवतेन अ।दि से इस विव मे स्थानीय परिवतंन होते रहते है ।
उन विचारको ने यह् भी बतलाया कि यह् प्राणी स्वय ही अपनी
अच्छी व बुरी भावनाओ का कर्त्ता है। इन्ही मावनाजो कै अनुसार ही यह्
प्राणी अच्छे व बुरे कार्य करता रहता है और उन अच्छे 4 बुरे कर्मों का
फल भी बह रवय ही भोगता रहता है। अपने द्वारा किये हुये अच्छे
व बुरे कर्मो का फल प्रत्येक प्राणी को स्वतः (न्प7101900019) ही
मिलता रहता है। किसी भी प्राणी को उसके द्वारा किये हुए कर्मों का फल
देने में किसी भी तथाकथित सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कोई हाथ नहीं
होता ।
उन विचारकों ने यह भी बतलाया कि प्रत्येक प्राणी स्वयं ही, अपने
कर्मों को नष्ट करके अपनी आत्मा को परम पवित्र करके, मोक्ष (मुक्ति)
प्राप्त कर सकता है। किसी भी प्राणी को किसी भी महापुरुष अथवा तथा-
कथित परमेद्वर के अशीर्वाद अथवा वरदान के फलस्वरूप मोक्ष (मुक्ति)
प्राप्त नही हो सकता 1 यह् मोक्ष (मुक्ति) तो प्रत्येक प्राणी को स्वय उसके
अपने सत्-पुरुषार्थ से ही प्राप्त हो सकता है। एकबार मोक्ष प्राप्त कर लेने
पर बह प्राणी किसी की न तो बुराई ही करता है, न भलाई ही । वह सब
प्रकार के संकल्पो-विकल्पों से मुबत होकर अनन्त काल तक (सदेव के
लिये) सच्चे सुख और परमआनन्द की अवस्था मे ही रहता है। समस्त
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