पाजेब | Paajeb

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Paajeb by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रत्तप्रभा र्नप्रभा ने जद्दीसे शोफा से कददा-- जाओ दफ्तरसे स्टोरके लिए दो गरम सूट का झाडर करा लाझओ । सोमवार कों जाना दै । शोफ़र सुनकर ठिठका रद्द गया । बोज्ा-- दजूर पर्ची-- रत्तप्रमा बिंगढ़कर बोली-- क्या बात है जी पुराने होकर झूलते जाते हो कद्द नहीं रही हूँ श्राडर टाइप करा लाओ दृस्तस्वव ले जाना | या-- शोफ़र सिर भककाकर चला गया । तब रत्नप्रमा ने सुनते हो ? तुम किसी से बोलते क्यों नहीं ? मंगल ने सुनकर ऊपर देखा उत्तर नहीं दिया । गाते भी नहीं 2? इसका भी उत्तर उसने नहीं दिया । रत्नप्रभा बोली-- यहां तुम गाते क्यों नहीं हो ? वह अपनी उसी दृष्टि से देखता रद्द गया कुछ भी कहने का प्रयास नहीं किया । झ्वश भाव से रत्नप्रभा बोली-- तुम भच्छा गाते दो । भक्ति के भजन सुझे झच्छे लगते हें । पर भक्ति मेरी छूट गई दे । सुझे शोर तरद के काम रहते हैं । पर तुम्दें क्या हुआ हे ? में बहुत बुरी हूं ? तुम्हें यह ख्याल तो नहीं कि सेंने तुम्हें पिटवाया था ? मा -डुद्दारीका काम पसन्द मह्दो तो तुम छोड़ दो। तुमने एक बार भी नहीं कहा कि तुम्हें वह नापसन्द है । देखती हूँ तुम इसका भी नहीं मानते कि मेंने तुम्दें केसी हालत से बचाया है । तो क्या में इतनी बुरी हूँ ? . शिमले में जंगल हैं पेढ़ हें । कभी देखा है ? नहीं देखा होगा । वहां सुनसान भी बहुत दै । यहां जेसा वहां नहीं हे । वहाँ तुम खुलकर गा सकते हो । कया देखते दो ? इस तरह नहीं देखना चाहिए--डोे आए । शोफ़र से लेकर कागजू पर रत्नम्रभा ने दुस्तखुत कर दिये और मंगल शव तुम इनके साथ जाओ । सुझे फुसंत नहीं




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