अद्वेत वेदान्त में मनन की भूमिका | Adwet Vedant Me Manan Ki Bhoomika

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Adwet Vedant Me Manan Ki Bhoomika by जे. एस. श्रीवास्तव - J. S. Srivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2. अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से - आज का विश्व नाना प्रकार की विविधताओं मे बंटया हुआ ह । विश्व-मानव-समाज में व्याप्त आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रगत वेषम्य के कारण भविष्य कं अन्धकारमय होने कौ सूचना ड0 राधाकृष्णन के इस शब्दों में मिलती है, “अपने प्रसिद्ध व्यंगचित्र (कार्टून) मेँ “अनागत की ओर देखती हुई बींसवी शताब्दी (द ट्वेन्टिएथ सेचुभरी लुक्स एट द फ्यूचर) में मैक्स बीरबोस ने दिखाया है कि एक लम्बी , अच्छी वेशभूषा मेँ सज्जित, किंचितनमिति मुद्रा मे एक मानवाकृति विस्तृत भू दुश्य (लैडस्केप) के पार एक प्रश्न-चिहन कौ ओर देख रही है जो दूरवर्ती क्षितिज पर धूमकेतु की तरह लटका है ।” यह सर्वमान्य तथ्य है कि आज समस्त मानवीय राष्ट्रों की आर्थिक स्थिति के आधार पर तीन वर्ग बन गए हैं - 1. विकसित देश 2. अविकसित देश और 3. विकासशील देश। इस मानवकृत वर्गीकरण के कारण विश्व में राष्ट्रों के मध्य तनाव, द्वेष तथा शीत युद्ध उत्पन्न हो गया है । परस्पर दोषारोपण एवं असद्भावना के कारण विश्व-शान्ति के लिए किसी भी समय खतरा हो सकता है । विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आनेवाले देश अमेरिका और रूस आदि धन-धान्य-सम्पन्न होकर सभी प्रकार की सुख-सुंविधा का स्वयं उपभोग कर रहे हैं; किन्तु अन्य अओविकसित तथा अल्प विकसित देशों को सदभावपूर्वक सहयोग देने म अपनी उदारता का परिचय नही देते है । आज मानव-जाति का सबसे बडा अभिशाप है - शक्ति सन्तुलन का नष्ट हाना । आर्थिक रूप में समृद्ध देशों के पास उपभोग करने क लिए आवश्यकता से अधिक सम्पन्तता है; किन्तु अविकसित ओर अल्प विकसित रष कं पास सर्वथा अभाव एवं कष्ट है । विश्व॒ मानव कौ आधारभूत आवश्यकता का स्वरूप आर्थिक, सामाजिके, बौद्धिक तथा आध्यात्मिक हे । आर्थिक आवश्यकताओं का मानव जीवन मे कितना




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