संत मलूक ग्रंथावली | Sant Malook Granthawali
 श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
9 MB
                  कुल पष्ठ :  
335
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावनां / 45
देखी कही सुनी सब वरनी प्रेम हुलास।
छप परी साधून मेँ गावे सुधरा दास11
सुथरादास ने मलूक वाणी को कलमबद् किया । सुथरादास की परिचयी के अनुसार
मलूकदास के जीवन क विशदं विवरण प्राप्त होते ह! मलूकदास कौ लोकप्रियता उनकी
सरल सहज बोधगम्य वाणी और आचरण की एकता व प्रमाण के कारण फैलती गई।
मलुक ग्रंथावली में आरंभ मे दोहे और शब्द चयन करके पृथक् से दिए गए हैं
ताक्षि पाठकों-भक्तों को सुविधा रहे तथा वे शेष रचनाओं के प्रति आकर्षित होकर उद्यत
हँ
“ज्ञान बोध' ग्रथ मेँ संत मलूक ज्ञानमार्गं के पथिक ओर ज्लानमार्गी परंपरा के पोषक
सिद्ध होते है, साथ ही ज्ञानमार्गी कबीर की भांति तीर्थयात्रा, गृहस्थ-त्याग,
साधुता का छोंग करने के कृत्यो का निषेध करते हैं, तो ज्ञान, भक्ति, कर्म, तैराग्य की
महत्ता व स्थापना भी की गई है।
“भक्ति विवेक' में भगवत-भक्ति का वर्णन उसके अंग-उपागो सहित मिलता है।
विषय प्रतिपादन में कई दृष्टांतों-कथाओ का उपयोग है। इसी ग्रथ में भक्ति एवं योग
के कई आयामो का पृथक-पृथक् अनुच्छेदों में वर्णन है। 'बथा अथ तन्मात्रा भूमिका'
से लेकर “जग भास वरनन' तक सात अंग हैं।
“ज्ञान परोक्छि' ग्रंथ भे जीव, आत्मा, वैराग्य, सृष्टि कौ उत्पत्ति, अष्टाग योग, अदत
आदि दार्शनिक अवधारणाओं को समाहिते किया गया दै!
“सुख सागर ' रचना मे ब्रह्य तथा उसके विभिन अवता की लीला का वर्णन
है।
“विभे विभूति' ग्रंथ में मलूकदास जी की चिंतना एवं दार्शनिक बिचारों का
प्रकटीकरण हुआ है। ब्रह्म का स्वरूप, उसका महात्म्य, ब्रह्म-प्राप्ति के उपायों को लक्ष्य
करिया गया है तो साथ ही अष्टाग योग, साधना एव उस प्राप्त फल एवं आत्मा पर पडने
वाले प्रभावो का वर्णन |
 ध्रुव चर्तरि' मे धुव भक्ते कौ दृढ भक्ति कौ कथा के माध्यम से पुनः भव्ति का
प्रताप रेखांकित किया है संत मलूकदास ने तो 'रघुज चरित्र' के माध्यम से रामभक्ति
एवं राम की लीला, राम के प्रताप को जीव के लिए मुक्ति का मार्ग सिद्ध किया है।
मुख्यतः दोह्य ओर शब्द-रूप मे अति सरल भाषा मे संत्र मलूक कौ वाणी अपने
अद्वितीय अनुभवसिद्ध साक्षीभ[ाव को हमे उपलब्ध कराती है। कहीं मैथिली, कहीं खड़ी
बोली, कहीं पंजाबी के मिले-जुले रूपाकारो में बड़ी लुभावनी, प्रेरक और मुक्तिदात्री है
यह ग्रंथावली। हम सभी ग्रथों को पूर्णतः प्रामाणिक मानते हैं, शेष कार्य शोधकर्ताओं और
विद्वानों पर छोड़ते हैं।
एक अन्य तथ्य की चर्चा करना भी जरूरों लग रह्म है। सत मलूकदास जी के
 
					
 
					
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