मुकुट | Mukut

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Mukut by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravendranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुकुट कमलादेवी ने कहा-नहीं, नहीं, यह नहीं हो सकता रॉज-रोज वे शिकार करने जायँगे, और में अपने कमरे में बैठकर मरती रहूँगी |? राजघर में कहा--आज फिर रात के समय ही शिकार होगा ।” कमलादेवी ने मिर हिलाकर कह्टा--एऐसा कभी हो ही नहीं सकता । में देखूँगी कि वे आज केसे जाते हैं ।” राजपर बोले--“भाभी जी, तुम. एक काम करो। घनुष-बाणों को कहीं छिपाकर रख दो |”? कमलादेवी ने कह्ा--“कहाँ छिपाऊँ !?? राजधर बोले--“मुझे दे दो, में ही छिप्रकर रख दूँगा |” कमलादेवी ने हँपकर कहा--यह कोई बुरा विचार नहीं है। एक खासा कौतुक ह्ये जायगा [” परन्तु त्तरमात्र $ लिये मन ही मन उन्होंने प्रश्न क्रिया-- तुम्हारे मन में कोई गुप्त उद्देश्य तो निहित नहीं है? मेरा उपकार करने आये हो, ऐसा तो मुझे नहीं जान पड़ता | स्वस्थ होकर बोलीं-- “आओ, -अखशाला में आओ |” कहकर कमलादेवी राजघर करो अपने साथ ले गर्यी। ताली लेकर उन्होंने अश्नरशाला का दरवाजा खोल दिया। जधर मे उयोही कोठरी मे प्रवेश क्रिया, त्योंही कमलादेवी ने दरवाजा बन्द कर, ताला लगा दिया। राजघर उस कोटठरी में बन्द हये रहे। कमलादेवी ने बाहर ते हंसक कल्य श्वर जी में यहाँ से अब जा रही ह । ओर वे चली गयी । । इधर सन्ध्या हो जने पर हद्रकुमार श्रन्त्पुर में आगे, और ११




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