घाघ और भड्डरी की कहावते | Ghagh Aur Bhaddari Ki Kahawaten

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Ghagh Aur Bhaddari Ki Kahawaten by पं हरिहरप्रसाद त्रिपाठी - Pt. Hariharprasad Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रथ नीतिं- विषयक् बह पातर कृषी बोरहा भाय। कहें घाघ दुःख कहाँ समाय ॥ २९ ॥। नस काटने वाला जूता बात कांठने वाली आरत सबसे पहले लड़की का पैदा देना कमजोर कृषि और पागल भाई से बहुत दी तकलीफ उठानी पहुती है । ऐसा घाघ का कथन है ॥ ३२ ॥। मेंस खुशी जब में डिया परे । रॉड़ खुशी जब सबका मरे ॥ ३३ ॥ मैंस कीचड़ में बेठने से खुश रहती है और रॉड सी को दूसरी समी खियों के विधवा हो जाते पर खुशी प्राप्त होती है ॥ ३३ ॥ खेती करे बनिज को धावे | ऐसा बूढ़े था न. पावे ॥ ३४ ॥। जो श्ादमी सती करने के साथ ही साथ रोजगार भी करना चॉइता है वह किए शोर का नहीं होता। उसके दोनों काम बिंगड़ लाते ४ ४ ॥। भूगी हृथिसी चंदुक्ी जोय । पूस की बरखा चिरले होय ॥ है ॥ भूरे रंग की इथिनी गंजे सिर बाली स्री झथात्‌ जिंसकें सिर पर बाल न दो तथा पू्व के महीने की चर्षा बिरले ही हुआ करती है । ये सब चीजे माग्यशालियों को ही प्राप्त होती हैं ३५ ॥| घषसि नीके कापड़े घबल से नीके बार । भाछी काली कामरी भीक ने काली सार ॥ है पे ॥ सफर घर झष्छे होते हैं परन्तु सफेद केंश अच्छे नहीं होते । असी धकार काली कमरी छन्छी पर काली सखी अच्छी नहीं ॥ १९ ॥ मर न समकुल शोय | सेहि घर आरइन नित चंडि दोय ॥ ७ जिस घर में मरकहा बैल श्रौर नाधननखरे वाली श्री होंगी उस




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