गांधीवादीयोजना | Gandhivadi Yojana

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Gandhivadi Yojana by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| ( ५ ) त्याग नहीं कर देना चाहिये, क्योंकि दूर देशों की लोकशाही का नाश अपरिहाय रूप से घर की लोकशाही को सी छीन लेने की तरफ सकता है ।» हम को याद रखना चाहिये कि आर्थिक समानता के बिना , शज॑नैतिक लोकशादी असम्भव है । प्रो लास्की कहते हैँ कि «राजनैतिक समता तब तक कभी वास्तविक नही दो सकती जब तक कि वह वस्तुतः आर्थिक समानता को लिये हुये न हो ।” “अन्यथा राजनीतिक शक्ति को आथिक ताक॒त की दासी बनना पड़ेगा || यही कारण है कि पूजीवाद ओर लोकशाद्दी असंगत है, क्योंकि पूं जीवादी समाज में 'सम्पन्नों' और “अकिचनों? के बीच एक गहरी खाई सुह बाये खड़ी रहती है। फत्नतः राष्ट्रीय अथ-व्यवस्था की एक ठोस पद्धति को भिन्न-भिन्न आदुमियो की आमदनियों मे बड़ी विषमता नहीं आने देनी चाहिये; नहीं दो देर या संबेर उस लोकतंत्र को धनिकतंत्र या स्वल्प-जन-तंत्र को स्थान देना पड़ेगा | योजना का तीसरा सिद्धान्त यह होना चाहिये कि देश का अ्त्येक नागरिक न्याथपूणं और सम्मानित साधनों के द्वारा अपनी आजीविका कमाने का अधिकारी है। हरएक नागरिक. को कास करते और अपनी इमसानदारी की मेहनत की उत्तम कमाई को हासिल करने का एक अभिन्न हक्क है। हमें जीवन- चुत्ति को “खेरातः और बेकारी बीमा, का प्रतिरूप नदी मानना चाहिये। ये चीजें सचमुच बहुत भिन्न हैं, क्योंकि पहली का मतलब है काम और जिन्दगी? और दूसरी हे 'सड़ाँद और मौतः । बेकारी और अतण्व जीविका का प्रश्न सिफे तभी {60170187 07 01168, ए. 162




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