आर्थिक संगठन समाजवाद यह पूँजीवाद | Arthik Sangathan (samajvaad Ya Punjivaad)

Arthik Sangathan (samajvaad Ya Punjivaad) by ठाकुरप्रसाद सक्सेना - Thakur Prasad Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ই यदि उनका कहना स्च हो तो फिर यह्‌ प्रश्न उठता समाजवादी ऐसे पूँजीवाद का शन्त क्यों करना चाहः उनका तो यह विश्वास है कि पूजीवाद को यह प्रशंसा उपयुक्त नही । वास्तव में वे वस्तुएऐ' जिन्हे अधिक मनुष्य अधिकतर चाहते है, बनाई हौ नदं जाती वरन उनके स्थान पर ऐसे पदार्थ बनाए जाते है जिन्हे केवल मुट्ठी भर मनुष्य चाहते है । इतना ही नहीं, बरन्‌ ऐसे पदाथ भी, जिनके विना रूहसों मनुष्यों के प्रायः जीवन तक चले जाते है, केवल थोड़े से लाभ के लोभ के कारण नही बनाए जाते ओर मानव रूमाज का इस निदेयता ओर कठारता से नाश करिया जाता है। लाभ के आगे पूजीवाद मे मानव समाज के हित का विचार तथा मनुष्यता के भावों का पतन हो जाता है ओर मनुष्य एक निर्जीब काठ के पुतले कौ.्माति केवल लाम रूपी कड़िया के सहारे ही काम करने लगता है, उदाहरण के लिये, इ गलंड तथा श्रमेरिका एसे उतन्नतिशाली पूँजीवाद दैशो को दी लेली जिये । अन्य दशां की वात होड दाजिये स्वयं इन दैशो के वार्यो को भो रोटी, मांस, दूध; कपड़ा, तथा रहने के लिये घर्‌ इत्यादिक आवश्यक वस्तुओं को आज भो उत्सुकता से चाह है। ऐसे पदाते आवश्यकतानुसार उत्पन्न ही नही किये जाते क्‍यों कि इनके उत्पन्न करने मे अधिक लाभ नही होता; चाहे इनके बिना सूदखों देशवास्म्यो का जोवन उत्सग ही क्यो न हो जाय। इनके स्थान पर ऐसी अनावश्यक तथा व्यथं की वस्तुये बनाई जाती है जिन्हे थोडे से धनी केवल अपने आनन्द विलाल; सजधज इत्यादि के किये चाहते है । उनसे पूजीपतियो को अधिक मूल्य मिलता ই। লিজ समय तक लामके सिद्धांत पर उपज कौ संख्या निश्चित की जा वेगी; अनावश्यक वस्तुये वनती हौ रहेगी ओर उसके फलस्वरूप जीवन के लिये आवश्यक वस्तुओं की कमी रहेगी इसी से यह कहना पड़ता है कि जिस संगठन का परिणास जन साधारण के लिये हानिकारक दैः उसमे अवश्य बुराई है ओर बह कभी भी उचित तथा बांछ॒नीय नहीं कहा जा रूकता। इस के अतिरिक्त पूजीवाद से; कभी कमी ऐसे पदार्थ इतनी




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