चट्टान से पूछलो | Chattan Se Puchalo

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ १५४६ गया हूँ । इस बीच में बहुत-सी कहानिया लिख डालीं !” “तुम कहानिया लिखो,”” वह बोला, “6म्हें कहानिया लिखने से रोकने का मुझ में दम नहीं | पर तुम्हें सदेव एक लोकगीत-स ग्रहकर्ता के रूप मे याद्‌ करिया जायगा; कदानी-लेखक त रूप मेँ नहीं |” यह तो बड़ा कठोर फैसला है, मैं सोचने लगा | यह तो वही बात है कि एक शीशी पर जो लेवल लग गया उसे उतारकर नया लेवल लगने की आशा नहीं की जा सकती।” क्या करुग पोशः के कहानी होने म किसी को सन्देह दौ सक्ता दै? क्या इसका युदी दोष सबको खटकता रहेगा कि इसमे लोकगीत और कामी का सम्मिश्रण क्यों है । 'कुग पोंश” का जन्म लोकगीत की कोख से हुआ है ओर यह कोई दोष नहीं |? उस समय “अ्रन्न देवता? की पृष्ठ भूमि में भी मुके गोड लोकवार्ता की शक्ति का श्रेय स्वीकार करना पड़ा । किस प्रकार पहली बार जंगल में रेल आ पहुची ओर इस पर सवार द्दोकर अन्न देवता बम्बई चला गया--यह मेरी अपनी कल्पना न थी। मैंने कहा, “मैंने बहुत कुछ देखा है, बहुत कुछ महसूस किया है, ओर इस “बहुत कुछ? में से थोडा-बहुत कहानियों के रूप मेँ प्रस्तुत किया है |”? वह बोला, “तुम जो भी कहो पर होगा वही जो मैं कह चुका हू |”! सचमुच यह गरमागरम बहस करने का अवसर नहीं था। मैंने कहा, “हवा के कन्धों पर जैसे धूल के कण उडते फिरते हैं ऐसे ही मैंने जिन व्यक्तियों को बहुत समीप से देखा वे मेरी कल्पना को छ-& जाते हैं। उन्हें में भुला तो सकता नहीं, ओर यदि मैं कहानियों में उनके चित्र प्रस्तुत करते हुए अपने ह्वदूय ओर मस्तिष्क को इलका न करू' तो मैं लोकगीत-सम्बन्धी कार्य में सी पूरी रुचि से नही जुठा रह सकता 1?




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