अमृत द्वार | Amrit Dwar
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
762 KB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अमृत द्वार नाचो अहोभाव है नाच मेरे प्रिय आत्मन एक नया मंदिर बन रहा था उस मार्ग सै जाता हुआ एक यात्री उस नव निर्मित मंदिर को देखने के लिए रुक गया। अनैक मजदूर काम कर रहे थे। अनेक कारीगर काम कर रहे थ। न मालूम कितने पत्थर तोड़े जा रहे थे। एक पत्थर तोड़ने वाले मजदूर के पास वह यात्री रुका और उसने पूछा कि मेरे मित्र तुम क्या कर रहे हो? उस पत्थर तोड़ते मजदूर ने क्रोध से अपने हथौडे को रोका ओर उस यात्री की तरफ देखा ओर कहा क्या अंधे हो! दिखाई नहीं पड़ता? मैं पत्थर तोड़ रहा हूं। और वह वापस अपना पत्थर तोडने लगा। वह यात्री आगे बदरा और उसने एक दूसरे मजदूर को भी पूछा जो पत्थर तोड़ रहा था। उसने भी पूछा क्या कर रहे हो? उस आदमी ने अत्यंत उदासी से आंखें ऊपर उठाई और कहा कुछ नहीं कर रहा रोटी-रोटी कमा रहा हूँ। वह वापस फिर अपना पत्थर तोड़ने लगा। वह यात्री और आगे बढ़ा और मंदिर की सीद्रियों के पास पत्थर तोड़ते तीसरे मजदूर से उसने पूछा मित्र कया कर रहे हो? वह आदमी एक गीत गुनगुना रहा था। और पत्थर भी तोड़ रहा था। उसने आंखें ऊपर उठायीं। उसकी आंखों मैं बड़ी खुशी थी। और वह बढ़े आनंद के भाव सै बोला मैं भगवान का मंदिर बना रहा हूं। फिर वह गीत गुनगुनाने लगा और पत्थर तोड़ने लगा। वह यात्री चकित खड़ा हो गया और उसने कहा कि तीनों लोग पत्थर तोड़ रहे हैं। लैकिन पहला आदमी क्रोध से कहता है कि मैं पत्थर तोड़ रहा हूँ आप अंधे हैं? दिखाई नहीं पड़ता? दूसरा आदमी भी पत्थर तोड़ रहा है लेकिन वह उदासी से कहता है कि भँ रोजी रोटी कमा रहा हूँं। तीसरा आदमी भी पत्थर तोड़ रहा था लैकिन वह कहता है आनंद सै गीत गाते हुए कि मैं भगवान का मंदिर बना रहा हू।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...