अमृत की दिशा | Amrit Ki Disha

Amrit Ki Disha by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अमृत की दिशा एक साधु के आश्रम मैं एक युवक बहुत समय सै रहता था। फिर ऐसा संयोग आया कि युवक को आश्रम सै विदा होना पड़ा। रात्रि का समय है बाहर घना अंधेरा है। युवक ने कहा रोशनी की कुछ व्यवस्था करने की कृपा करें। उस साधु ने एक दीया जलाया उस युवक के हाथ मँ दीया दिया उसे सीदियां उतारने के लिए खुद उसके साथ हो लिया। ओर जव वह सीद्वियां पार कर चुका ओर आश्रम का द्वार भी पार कर चुका तो उस साधु ने कहा कि अब मैं अलग हो जाऊं क्योंकि इस जीवन के रास्ते पर बहुत दूर तक कोई किसी का साथ नहीं दे सकता है। और अच्छा है कि मैं इसके पहले विदा हो जाऊं कि तुम साथ के आदी हो जाओ। और इतना कह कर उस घनी रात मैं उस अंधैरी रात मैं उसने उसके हाथ के दीये को फूंक कर बुझा दिया। वह युवक बोला यह क्या पागलपन हुआ? अभी तो आश्रम के हम बाहर भी नही निकल पाए साथ भी छोड़ दिया और दीया भी बुझा दिया। उस साधु ने कहा दूसरों के जलाए हुए दीये का कोई मूल्य नहीं है। अपना ही दीया हो तो अंधेरे मैं काम देता है किसी दूसरे के दीये काम नहीं देते हैं। खुद के भीतर सै प्रकाश निकले तो रास्ता प्रकाशित होता है और किसी तरह रास्ता प्रकाशित नहीं होता है। तो मैं निरंतर सोचता हूँ लोग सोचते होंगे कि मैं आपके हाथ मैं कोई दीया दे दूंगा जिससे आपका रास्ता प्रकाशित हो जाए तो आप गलती मैं हैं। आपके हाथ मैं कोई दीया होगा तो. मैं उसे बड्डी निर्ममता से फूंक कर बुझा दे सकता हूं। मैरी मंशा और मैरा इरादा यही है कि आपके हाथ मैं अगर कोई दूसरे का दिया हुआ प्रकाश हो तो मैं उसे फूंक दूं उसे बुझा दूं।




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