अरी मैं तो राम के रंग छकी | Ari Main To Ram Ke Rang Chhaki
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.8 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आरी मैं तो राम के रंग छकी प्यारे ओशो हम खुदा के तो कभी कायल न थे तुम्हें देखा तो खुदा याद आया। शबूर सिजदा नहीं है मुझको तू मेरे सिजदों की लाज रखना यह सिर तेरे आस्तों से पहले किसी के आगे झुका नहीं है। और क्या कहूँ बस अब आप कुछ एेसौ तदवीर करं कि जिससे यह जो एक तीर-ए-नोमकश दिल में चुभा है सीने के पार हो जाए। प्रश्न लिखने के बहाने हौ ओस् बह निकले हैं। आप इसका जवाब देंगे तब भी खूब बहेंगे नहीं देंगे तब भी। क्या करूं अब तो बरसात आ ही गई! पर पता नहीं बर का साथ कब होगा होगा भी या नहीं? सत्संग का यही अर्थ है। जिस निमित्त परमात्मा की याद आ जाए वहीं सत्संग है। सागर में उठते हुए तृफान को देखकर परमात्मा की याद आ जाए तो वहीं सत्संग हो गया। आकाश में उगे चांद को देखकर याद आ जाए तो वहीं सत्संग हो गया। जहां सत्य की याद आ जाए वहीं सत्य से संग हो जाता है। और परमात्मा तो सभी में व्याप्त है। इसलिए याद कहीं से भी आ सकती है--किसी भी दिशा से। और परमात्मा तुम्हें सब दिशाओं से तलाश रहा है खोज रहा है। कहीं से भी रंध्र मिल जाए जय सी संधि मिल जाए तो उसका झोंका तुमें प्रवेश हो जाता है। वृक्षों की हरियाली को देखकर उगते सूरज को देखकर पक्षियों के गीत सुनकर पपीहे की पी कहां की आवाज सुनकर. ..। और अगर तुम गौर से सुनो तो हर आवाज में उसी की आवाज है। तुम्हें अगर मेरी आवाज में उसकी आवाज सुनाई पड़ी तो उसका कारण यह नहीं है कि मेरी आवाज ही केवल उसकी आवाज है उसका कुल कारण इतना है कि तुमने मेरी ही आवाज को गौर से सुना। सभी आवाजें उसकी हैं। जहां भी तुम शांत होकर मौन होकर खुले हदय से सुनने को राजी हो जाओगे वहीं से उसकी याद आने लगेगी। खदा के कायल होना ही होगा क्योंकि खुदा तो सब तरफ मौजूद है। आश्चर्य तो यही है कि कुछ लोग कैसे
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