असंभव क्रांति | Asambhav Kranti
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.1 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)असंभव क्रांति १. सत्य का द्वार मेरे प्रिय आत्मन् एक सम्राट एक दिन सुबह अपने बगीचे मैं निकला। निकलते ही उसके पैर मै कांटा गड़ गया। बहुत पीड़ा उसे हुई। और उसने सारे सामाज्य मैं जितने भी विचारशील लोग थे उन्हें राजधानी आमंत्रित किया। और उन लोगों से कहा ऐसी कोई आयोजना करो कि मैरे पैर मैं कांटा न गड़ पाए। वे विचारशील लोग हजारों की संख्या मैं महीनों तक विचार करते रहे और अंततः उन्होंने यह निर्णय किया कि सारी पृथ्वी को चमड़े से ढांक दिया जाए ताकि सम्राट के पैर मैं कांटा न गड़ै। यह खबर पूरे राज्य मैं फैल गई। किसान घबड़ा उठे। अगर सारी जमीन चमड़े से ढंक टी गई तो अनाज कैसे पैदा होगा? सारे लोग घबहा उठे--राजा कै पैर म कांटा न गहे कह इसके पहले सारी मनुष्य जाति की हत्या तो नहीं कर दौ जाएगी? क्योकि सारी जमीन टंक जाएगी तो जीवन असंभव हो जारगा। लाखों लोगों नै राजमहल के द्वार पर प्रार्थना की और राजा को कहा ऐसा न करें कोई और उपाय खोजें। विद्वान थे बुलाए गए और उन्होंने कहा तब दूसरा उपाय यह है कि पृथ्वी सै सारी धूल अलग कर दी जाए कांटे अलग कर दिए जाएं ताकि आपको कोई तकलीफ न हो। कांटों की सफाई का आयोजन हुआ। लाखों मजदूर राजधानी के आसपास झाइएं लेकर रास्तों को पथों को खेतों को कांटों से मुक्त करने लगे। धूल के बवंडर उठे आकाश धूल से भर गया। लाखों लोग सफाई कर रहे थे। एक भी कांटे को पृथ्वी पर बचने नहीं देना था धूल
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