अथतो भक्ति जिज्ञासा भाग १ | Athato Bhakti Jigyasa vol 1
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.6 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथातो भक्ति जिज्ञासा भूमिका भक्ति उत्सव का जीवन आज को वैज्ञानिक जीवन में भक्ति की बात करना कुछ अटपटा-सा प्रतीत होता है--लेकिन गहराई से देखेंगे तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि आज के मशीनी माहौल में भक्ति सर्वाधिक प्रासंगिक है। इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर रहे हमारे समाज को वैज्ञानिक विकास की चकारचौंध तो खूब मिली है खूब सुख-सुविधाएं मिली हैं--लेकिन एक अति गंभीर हादसा भी घटित हुआ है वह यह कि इन सुख- सुविधाओं का सदुपयोग करने वाला व्यवित निष्प्राण हों गया है। उसके जीवन में रसधार नहीं है। वह आत्मवान नहीं है। वस्तुओं के अंबार में व्यक्ति स्वयं गायब हों गया है या मात्र एक वस्तु हो गया है। वैज्ञानिक उपकरणों के शोरगुल में जीवन का अंतर्सा] गीत खो गया है। भक्ति जीवन का अंतर्सा] गीत है। भक्ति एक सेतु है व्यवित और अस्तित्व के बीच--एक संगीतमय सेतु! भक्ति जीवन की लयबद्धता है। भक्ति एक परम स्वीकृती है कि मैं यद्यपि एक लहर हूं तथापि सागर से पृथक नी ह भवित एक बोध है कि म सागर ही हूं। यह परम बॉध जीवन का परम आनंद है। और यह बोध कोई तपश्चर्या कोई प्रयास कोई साधना नहीं है--वह तो स्मरण मातर है। ओशो कहते हैँ भवित का जीवन उत्सव का जीवन है साधना का जीवन नहीं। प्रयास नही --परसाद। भक्ति की इस स्थिति में ओशो कहते हैं उस घड़ी में सारे जगत का ऐश्वर्य तुम्हारा है-- सारी गरिमा सारा गौरव सारा वैभव। चांद-तारे तुम्हारे हैं। सूरज और पृथ्वी तुम्हारी है। वृक्ष और पशु- प्षी तुम्हारे हैं। आइए भवित कं इस हरे-भरे रसमय मार्ग पर विचरण करं । स्वामी चैतन्य कीर्ति संपादक--ओशों टाइम्स इंटरनेशनल भविति जीवन का परम स्वीकार है [1 अथातोभवितजिज्ञासा ।।१।। सापरानुरवितरीश्वरे ।।२।। तत्संस्थास्यामृतत्वोपदेशातू 11३11 ज्ञानमितिचेन्नद्विषतोपिज्ञानस्यतदसंस्थिते 11४ ॥। नगण | खो पलणाल | __ _
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