आत्म पूजा भाग १ | Atma Puja Vol 1
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
716 KB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मा पुजा भाग-९ १ उपनिषदों कौ परंपरा व ध्यान के रदस्य ओम्। तस्य निङ्चितनं ध्यानम। ओम्। उसका निरंतर स्मरण ही ध्यान है। इसके पूर्व कि हम अज्ञात में उतरें थोड़ी सी बातें समझ लेनी आवश्यक दै। अज्ञात ही उपनिषदों का संदेश। जो मूल है जो सबसे महत्वपूर्ण हैं वह सदैव ही अज्ञात है। जिसको हम जानते हैं वह बहुत ही ऊपरी है। इसलिए हमें थोड़ी सी बातें ठीक से समझ लेना चाहिए इसके पहले कि हम अज्ञात में उतरें। ये तीन शब्द-ज्ञात अज्ञात अज्ञेय समझ लेने जरूरी है सर्वप्रथम क्योंकि उपनिषद अज्ञात से संबंधित हैं कंवल प्रारंभ कौ भाति। वे समाप्त होते हैं अज्ेय में। ज्ञात की भूमि विज्ञान बन जाती है अज्ञात-दर्शनशास्त्र या तत्वमीमांसा ओर अज्ञेय टै धर्मं से संबधित। दर्शनशास्त्र ज्ञात व अज्ञात मे विज्ञान व धर्म के बीच एक कड़ी रै। दर्शनशास्त्र पूर्णतः अज्ञात से संबंधित दै। जैसे ही कुछ भी जान लिया जाता है वह विज्ञान का हिस्सा हो जाता है और वह फिर फिलॉसाफी का हिस्सा नहीं रहता। इसलिए विज्ञान जितना बढ़ता जाता है उतना ही दर्शनशास्त्र आगे बढ़ा दिया जाता है। जो भी जान लिया जाता है विज्ञान का हो जाता दै ओर दर्शनशास्त्र विज्ञान व धर्म के मध्य बीच की कड़ी है। इसलिए विज्ञान जितनी तरक्की करता दै दर्शनशास्त्र को उतना ही आगे बदूना पडता है क्योंकि उसका संबंध केवल अज्ञात से ही है। परन्तु जितना दर्शनशास्त्र आगे बढ़ाया जाता है उतना ही धर्म को भी आगे बढ़ना पढ़ता है क्योंकि मूलतः धर्म अज्ञेय से संबंधित है। उपनिषद अज्ञात से प्रारंभ होते हैं और वे अज्ञेय पर समाप्त होते हैं। और इस तरह सारी गलतफहमी खड़ी
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