आत्म पूजा भाग ३ | Atma Puja Vol 3
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical, धार्मिक / Religious
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
769 KB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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
ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्मा पूजा भाग-३ भावातीत की अनुभूति सर्वत्र भावना गंघः। सब जगह उसी की अनुभूति ही एकमात्र गंघ है। भारतीय दर्शन अस्तित्व को दो भागों में बांटता है। एक तो है यह-जिसकी त रफ कि संकेत किया जा सके। और दूसरा है-वह-जो कि इसके पार है जिस की और कि संकेत न किया जा सके। ट्रथ के लिए वास्तविकता के लिए संर कृत में एक शब्द है-सत्य-यह संस्कृत का शब्द वड़ा ही अर्थपूर्ण और वड़ा ही सुंदर है। यह दो शब्दों से मिल कर वना है सत ओर तत। सत का मतलव होता है यह ओर तत का अर्थं होता है वह। सत्य का अर्थ होता है यह + वह।। इसलिए पहले हम यह समझ लें कि यह और वह क्या हैं। वह जो कि जाना जा सके वह जो कि समझा जा सके मन में उतारा जा स के जिसकी ओर कि उंगली से संकेत किया जा सके जिसे कि दिखलाया जा सके और जो कि देखा जा सके वह सब यह में आ जाता है। और वह जो क देखा तो नहीं जा सकता किंतु जिसकी सत्ता हो वह जिसे कि जाना न ज 1 सके. किंतु फिर भी जिसका अस्तित्व है वह जिसका कि चितन न किया ज 1 सके पर फिर भी जो विद्यमान है वह सब वह में समाहित है। अतः यह का अर्थ होता है ज्ञान व नेय.ओर वह मतलब होता है-अज्ञात व अनेय। सत य का अर्थ होता है ज्ञात+अज्ञात। इस तरह सत्य का अर्थ हुआ-यह+वह। यह विभाजन वड़ा अर्थपूर्ण है। इसका मतलव हुआ कि उसे विना कोई भी ना म दिए हम उसे सिर्फ यह और वह कह कर पुकारते हैं। जो कुछ भी विज्ञान जान सकता है वह यह है और जो कुछ भी विज्ञान नहीं जान सकता वह व
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