भक्ति सूत्र | Bhakti Sutra

Bhakti Sutra by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परम प्रेमरूपा है भक्ति पहला प्रवचन सूत्र अथातो भक्ति व्याख्यास्यामः।। ९ ।। सा त्वस्मिन्‌ परमप्रमरूपा।। २ ॥ अमृत्तस्वरूपा च।। 3 ॥। यल्लब्ध्वा पुमान सिद्धो भवति अमृतो भवति तसो भवति।। ४ ॥ यत्प्राप्य न किग्विक्षाग्छति न शोचति न द्व्टि न रमते नोत्साही भवति।। ५ ॥ यज्ज्ञात्वा मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति।। ६ ।। जीवन है ऊर्जौ -- ऊर्जा का सागर। समय के किनारे पर अथक अंतहीन ऊर्जा की लहरें टकराती रहती है न कोई प्रारंभ है न कोई अंतः वस मध्य है बीच है। मनुष्य भी उसमैं एक छोटी तरंग है एक छोटा बीज है -- अनंत संभावनाओं का। तरंग की आकांक्षा स्वाभाविक है कि सागर हो जाए ओर बीज की आकांक्षा स्वाभाविक है कि वृक्ष हो जाए। बीज जब तक फूलों मैं खिले न तब तक तृप्ति संभव नहीं है। मनुष्य कामना है परमात्मा होने की। उससे पहले पडाव बहत रै मंजिल नहीं है। रात्रि-




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