२४ वचनामृत | 24 Vachanamrit

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24 Vachanamrit by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद के आगे भगवदवार्ता चर्चा करनी . या प्रकार श्रीगो कब्दाथनी दद्त्युगुस प्रति आज्ञा के ये कि. .. इति शीनोछुलनाथजी करत अप्रम वचनाशत संएणम / कक वचनासत मो. फैस अब श्रीगोकुलनाथजी ओरहु आज्ञा करतहे जो कोउ निंदा टरेचन कह्दे ताको उत्तर न देनो सा सहन करनो अपनें में दोष जानी उनसों क्रोध न करनों. अपने भनंमें खेद न करनो और उनसो बहुत चिरोध होय तो नेक दरि रहेनो. उनके कृत्य देखिें दोष वृद्धि रंचकहू न करनी उनसो जयश्री झृष्णको राखनों. उनकी निंदा न करनी. या प्रकाः पके अपराध ते उस्पत रहेनो. एसे डरपत रे ताको से कार्य सिद्ध होय. प्र कण करि के हृदय पघारें निंदा सही. यह देष्णवनकों सर्वापर परम धरम हु. या प्रकार श्रीगोकुलनाथजी कल्याणभड्ट प्रति आज्ञा कीय है. फैल कम पटारटडारगए्िेणाया 1१ हि नएजीक्षत नवसों बचनासत संपूर्णम-




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