देख कबीरा रोय | Dekh Kabira Roya

Dekh Kabira Roya by आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देख कबीरा रोया भूमिका ओशो कौ प्रशंसा मे कुछ भी कह पान असंभव ख लगता है। घूम फिर कर दो ही शब्दों पर लौट आना पड़त है कि ओशो अनूढे है वे अपूर्व है । या उनकी प्रशेसा के लिए उन शब्दों को ज्यों का त्यों रख देना चाहिए जो उन्होंने कृष्ण बुद्ध या कबीर के लिए करे हैं। प्रस्तुत पुस्तक में भारत की समस्याओं से जुड़े ओशो के विचार आंखें खोल देने वाले हैं। जिस भी सोच-विचार बाले व्यक्ति ने इस प्रज्ञापुरुष के विचार सुने या पढ़े हैं वह एक ही बार में नत मस्तक हो गया। उनका ही हो कर रह गया। वे करुणा के सागर हैं उनकी करुणा का कोई अंत नहीं। लेकिन उनकी करुणा में कहीं दीनता नहीं। ओशो संपूर्णता से चोट करने वाले एक संन्यासी योद्धा हैं। आज से करीव बीस वर्ष पहले जब यह संन्यासी योद्धा अधर्मं ओर असत्य के विरुद्ध युद्ध के मैदान में उतर तो न्यस्त स्वार्थ के खेमं मे हड़कंप मच गया। पेडितों पुरोहितो कौ पिण्वियां वंध गड[]। मढ़ राजनौतिजञो के पावो के नीचे से जमीन खिसकने लगी। उन्होंने पहला वार गांधीवाद पर किया-- मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं लेकिन आंखें रहते देश को राज अंधकार में जाते हुए देखना भी असंभव है। धार्मिक आदमी को उतनी कठोरता और जड़ता मैं नहीं जुटा पाता हूं। देश रोज-रोज प्रतिदिन नीचे उतर रहा है। उसकी सारी नैतिकता खो रही है उसके जीवन में जो भी श्रेष्ठ है जो भी सुंदर है जो भी सत्य है वह सभी कलुषित हुआ जा रहा है। इसके पीछे जानना और समझना जरूरी है कि कौन सी घटना काम कर रही है और चूंकि मैंने कहा कि गांधी के बाद नया युग प्रारंभ होता है इसलिए गांधी से ही विचार करना जरूरी है। -- -- गांधीवादी कहते हैं कि उस पर विचार नहीं करना है। जो उन्होंने कहा है उसे वैसे ही मान लेना है। यह बात इतनी आंधी और खतरनाक है कि अगर इन सारी बातों को इसी तरह मान लिया गया तो गांधी की आत्मा भी आकाश में कहीं होगी तो रोएगी क्योंकि गांधी खुद अपनी जिंदगी में हर वर्ष अपनी भूलों को स्वीकार करते रहे और मानते रहे कि जो भूलें हो गई] उन्हें छोड़ देना है। अगर गांधी जिंदा होते तो इन बीस वर्षो में उन्होंने बहुत सी भूलें स्वीकार की होतीं। लेकिन गांधीवादी कहते हैं कि अब कोई भूल पर ध्यान नहीं देना है। जो कहा गया है उसे चुपचाप मान लेना है। यह अंधापन बहुत मंहगा साबित हुआ। बुद्ध और महावीर को अंधा मान लेने से अधापन मान लेने से इतना नुकसान नहीं हो सकता है क्योंकि बुद्ध और महावीर ने व्यक्तिगत मनुष्य के आत्मोत्कर्ष की बात की है। हिंदुस्तान में गांधी एक पहले ही




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